________________ बावीसइमं : किरियापयं बाईसवाँ : क्रियापद क्रिया-भेद-प्रभेदप्ररूपणा 1567. कति णं भंते ! किरियाओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! पंच किरियाप्रो पण्णत्ताओ। तं जहा-काइया 1 आहिगरणिया 2 पादोसिया 3 पारियावणिया 4 पाणाइवातकिरिया 5 / [1567 प्र.] भगवन् ! क्रियाएँ कितनी कही गई हैं ? [उ.] गौतम ! क्रियाएँ पांच कही गई हैं / यथा-(१) कायिकी, (2) आधिकरणिकी, (3) प्राद्वेषिकी, (4) पारितापनिकी, और (5) प्राणातिपातक्रिया। 1568. काइया णं भंते ! किरिया कतिविहा पण्णता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता / तं जहा-अणुवरयकाइया य दुप्पउत्तकाइया य / [1568 प्र.] भगवन् ! कायिकी क्रिया कितने प्रकार की कही गई है ? [उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार की कही गई है। यथा-अनुपरतकायिकी और दुष्प्रयुक्तकायिकी। 1569. आहिगरणिया णं भंते ! किरिया कतिविहा पण्णता ? गोयमा ! दुबिहा पण्णत्ता / तं जहा-संजोयणाहिकरणिया य निव्वत्तणाहिकरणिया य / [1566 प्र.] भगवन् ! प्राधिकरणिकी क्रिया कितने प्रकार की कही गई है ? [उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार-संयोजनाधिकरणिकी और निर्वर्तनाधिकरणिकी / 1570. पादोसिया णं भंते ! किरिया कतिविहा पण्णता? गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता / तं जहा-जेणं अप्पणो वा परस्स वा तदुभयस्स वा असुभं मणं पहारेति / से तं पादोसिया किरिया / [1570 प्र.] भगवन् ! प्राद्वेषिकी क्रिया कितने प्रकार की कही गई है ? [उ.] गौतम ! (वह) तीन प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार-जिससे स्व का, पर का अथवा स्व-पर दोनों का मन अशुभ कर दिया जाता है, वह है (त्रिविध) प्राद्वेषिकी क्रिया। 6571. पारियावणिया णं भंते ! किरिया कतिविहा पणत्ता ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org