________________ 426] [प्रज्ञापनासूत्र [2] एवं चप्पयथायराण वि उरपरिसप्पथलयराण वि भुयपरिसप्पथलयराण वि / [1466-2] इसी प्रकार चतुष्पद स्थलचरों, उरःपरिसर्प स्थलचरों एवं भुजपरिसर्प-स्थलचरों के औदारिक शरीर संस्थानों के (नौ-नौ सूत्र) भी (पूर्वोक्त प्रकार से समझ लेने चाहिए।) 1500. एवं खयराण वि णव सुत्ताणि / णवरं सम्वत्थ सम्मुच्छिमा हुंडसंठाणसंठिया भाणियदा, इयरे छसु वि। 1500 / इसी प्रकार खेचरों के (औदारिक शरीर संस्थानों के) भी नौ सूत्र (पूर्वोक्त प्रकार से समझने चाहिए / ) विशेषता यह है कि सम्मूच्छिम (तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों के प्रौदारिक शरीर) सर्वत्र हुण्डकसंस्थान वाले कहने चाहिए। शेष सामान्य, गर्भज आदि के शरीर तो छहों संस्थानों वाले होते 1501. [1] मणूसपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! छविहसंठाणसंठिए पण्णत्ते / तं जहा-समचउरंसे जाव हुंडे / [1501-1 प्र.| भगवन् ! मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिक-शरीर किस संस्थान वाला कहा गया ? [उ.] गौतम ! (वह) छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है। जैसे कि-समचतुरस्र से लेकर यावत् हुण्डक संस्थानवाला। [2] पज्जत्तापज्जत्ताण वि एवं चेव ! [1501-2] पर्याप्तक और अपर्याप्तक (-मनुष्यपंचेन्द्रिय-ौदारिक शरीर) भी इसी प्रकार (छहों संस्थान वाले होते हैं / ) [3] गम्भवक्कंतियाण वि एवं चेव / पज्जत्ताऽपज्जत्तगाण वि एवं चेव / [1501-3] गर्भज (-मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिक शरीर) भी इसी प्रकार (छहों संस्थानों (वाले होते हैं।) पर्याप्तक-अपर्याप्तक (गर्भज मनुष्यों) के (प्रौदारिक शरीर भी छह संस्थान वाले समझने चाहिए।) [4] सम्मुच्छिमाणं पुच्छा / गोयमा ! हुंडसंठाणसंठिया पण्णत्ता। [1501-4 प्र. सम्मूच्छिम मनुष्यों, (चाहे पर्याप्तक हो, या अपर्याप्तक) के (प्रौदारिक शरीर किस संस्थान वाले होते हैं ?) उ.] गौतम ! वे (सभी सम्मूच्छिम मनुष्यों के औदारिक शरीर) हुण्डक संस्थान वाले होते विवेचन–सर्वविध औदारिक शरीरों की संस्थान सम्बन्धी प्ररूपणा--प्रस्तुत 14 सूत्रों (सू. 1488 से 1501) में एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय-मनुष्य तक के विविध औदारिक शरीरों के संस्थानों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org