________________ इक्कीसवाँ अवगाहनासंस्थानपद] [441 [1520/1 प्र.] (भगवन) यदि देव पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, तो क्या भवनवासी देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, (अथवा) यावत् वैमानिक देव-पंचेन्द्रियों (तक) के (भी) वैक्रियशरीर होता है ? [उ.] गौतम ! भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के भी वैक्रियशरीर होता है और यावत् वैमानिक देव-पंचेन्द्रियों के भी वैक्रियशरीर होता है / [2] जदि भवणवासिदेवपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं असुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे जाव थणियकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउदिवयसरीरे ? गोयमा ! असुरकुमार० जाव थणियकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे वि। [1520/2 प्र. (भगवन् !) यदि भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, तो क्या असुरकुमार-भवनवासीदेवपंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, (अथवा) यावत् स्तनितकुमारभवनवासी-देवपंचेन्द्रियों (तक) के (भी) वैक्रियशरीर होता है ? उ] गौतम ! असुरकुमार-भवनवासी देव-पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है (और) यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देव-पंचेन्द्रियों (तक) के भी वैक्रिय शरीर होता है / [3] जदि असुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे कि पज्जत्तगअसुरकुमारभवण. वासिदेवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे अपज्जत्तगअसुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे ? गोयमा ! पज्जत्तगअसुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियवेउब्वियसरीरे वि अपज्जत्तगअसुरकुमारभवणवासिदेवपंचेंदियबेउब्वियसरीरे वि। एवं जाव थणियकुमारे वि णं दुगओ भेदो / [1520-3 प्र.) (भगवन् ! ) यदि असुरकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, तो क्या पर्याप्तक-असुरकुमार-भवनवासी देव-पंचन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, (अथवा) अपर्याप्तक-असुरकुमार-भवनवासी देव-पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है ? [उ.] गौतम ! पर्याप्तक-असुरकुमार-भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों के भी वैक्रियशरीर होता है और अपर्याप्तक-असुरकुमार-भवनवासी देव-पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार (भवनवासी-देव-पंचेन्द्रियों तक) के दोनों (पर्याप्तकअपर्याप्तक) भेदों के (वैक्रियशरीर जानना चाहिए / ) [4] एवं वाणमंतराणं अढविहाणं, जोइसियाणं पंचविहाणं / [1520-4] इसी तरह आठ प्रकार के वानव्यन्तर-देवों के (तथा) पांच प्रकार के ज्योतिष्क-देवों के (वैक्रिय शरीर होता है / ) [5] वेमाणिया दुविहा-कप्पोवगा कप्पातोता य / कप्योवगा बारसविहा, तेसि पि एवं चेव दुगतो भेदो / कप्पातीता दुविहा-गेवेज्जगा य अणुत्तरा य / गेवेज्जगा णवविहा, अणुत्तरोववाइया पंचविहा, एतेसि पज्जत्तापज्जत्ताभिलावणं दुगतो भेदो। [1520-5] वैमानिक देव दो प्रकार के होते हैं-कल्पोपपन्न और कल्पातीत / कल्पोपपन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org