Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [प्रज्ञापनासूत्र महाशुक्र और सहस्रार में जिन देवों की स्थिति महाशुक्रकल्प में 14 सागरोपम की है उनकी उत्कृष्ट भवधारणीय शरीरावगाहना पूरे 5 हाथ की होती है। जिनकी स्थिति 15 सागरोपम को है, उनकी उ. भ. शरीरावगाहना 4 हाथ और 3 हाथ की होती है। जिनकी स्थिति 16 सागरोपम को है, उनको अवगाहना 4 हाथ और 2, हाथ की होती है। जिनकी स्थिति 17 सागरोपम की है, उनको अवगाहना 4 हाथ और हाथ की होती है। सहस्रारकल्प में भी 17 सागरोपम वाले देवों की उत्कृष्ट भ. अवगाहना इतनी ही होती है। जिनकी स्थिति पूरे 18 सागरोपम की है, उनकी अवगाहना पूरे 4 हाथ की होती है / प्रानत, प्राणत, आरण और अच्युतकल्प के देवों को अवगाहना-पानतकल्प में जिनकी स्थिति पूरे 18 सागरोपम की है, उनकी भ. उ. शरीरावगाहना पूरे 4 हाथ की होती है। जिनकी स्थिति 16 सागरोपम की है. उनकी अवगाहना 3 हाथ और 3 हाथ की होती है। प्रागत कल्प में जिनकी स्थिति 20 सागरोपम की है, उनकी अवगाहना 3 हाथ और 2 हाथ की होती है / आरणकल्प में जिन देवों की स्थिति 20 सागरोपम की है उनकी अवगाहना 3 हाथ और 2 भाग की होती है। जिनकी स्थिति 21 सागरोपम की है, उनकी 3 हाथ और हाथ की होती है / अच्युतकल्प में जिनकी स्थिति 21 सागरोपम की है, उनकी भी भ. शरीरावगाहना 3 हाथ हाथ की होती है / जिन देवों की अच्युतकल्प में 22 सागरोपम की स्थिति है, उनकी उत्कृष्ट शरीरावगाहना 3 हाथ की होती है। प्रथम ग्रेवैयक में जिनकी स्थिति उत्कृष्ट 23 सागरोपम की है, उनके अवगाहना 3 हाथ की होती है / जिन देवों की स्थिति 2 हाथ और 5 हाथ को है। द्वितीय ग्रंवेयक में जिनकी स्थिति 23 सागरोपम की है, उनकी उ. अवगाहना 2 हाथ और 8, हाथ की होती है। द्वितीय वेयक में जिनकी स्थिति 24 सागरोपम की है, उनको उ. अवगाहना 2 हाथ हाथ की होती है। तृतीय ग्रेवेयक में जिनकी स्थिति 24 सागरोपम की है, उनकी उत्कृष्ट शरीरावगाहना 2 हाथ और 17, हाथ की होती है। तृतीय ग्रैवेयक में 25 सागरोपम की स्थिति वाले देवों की उ. शरीरावगाहना 2 हाथ 6 हाथ की होती है। चौथे अवेयक में जिन देवों की स्थिति - 5 सागरोपम की है, उनकी भी भ. शरीरावगाहना पूर्ववत् होती है। चौथे ग्रैवेयक में 26 सागरोपम की स्थिति वाले देवों की भ. शरीरावगाहना 2 हाथ व हाथ की होती है। पांचवें अवेयक में जिन देवों की स्थिति 26 सागरोपम की है, उनकी भी उ. शरीरागाहना पूर्ववत् ही है। पांचवें ग्रैवेयक में जिन स्थिति 27 सागरोपम की है, उनकी उ. भ. शरीरावगाहना 2 हाथ और 2 हाथ की होती है। छठे वेयक में जिन देवों की स्थिति 27 सागरोपम की होती है, उ. भव. शरीरावगाहना भी पूर्ववत् होती है। छठे ग्रैवेयक में जिन देवों की स्थिति 28 सागरोपम की है, उनकी उ. भव. शरोरावगाहना 2 हाथ और 3, हाथ की होती है। सातवें वेयक में जिन देवों की स्थिति 28 सागरोपम की है, उनकी भी शरीरावगाहना पूर्ववत् होती है / सातवें अवेयक में भी जिनकी स्थिति 26 सागरोपम होती है, उनकी उ. शरीरावगाहना 2 हाथ और 2, हाथ की होती है / आठवें अवेयक में भी जिनकी स्थिति 26 सागरोपम की है, उनकी भ. उ. शरीरावगाहना पूर्ववत् होती है / पाठवें ग्रेवेयक में जिनकी स्थिति 30 सागरोपम की है, उनकी भ. उ. शरीरावगाहना 2 हाथ व हाथ की होती है / नौवें ग्रेवेयक में जिन देवों की स्थिति 30 सागरोपम की होती है, उनकी भ. उ. शरीरावगाहना भी पूर्ववत् होती है। नौवें अवेयक में जिन देवों की स्थिति 31 सागरोपम की है, उनकी भवधारणीय शरीरावगाहना पूरे 2 हाथ की होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org