________________ 470 [प्रज्ञापनासूत्र [1553 प्र.] भगवन् ! औदारिक शरीर के लिए कितनी दिशाओं से (पाकर) पुद्गलों का चय होता है ? [उ. गौतम! नियाघात की अपेक्षा से छह दिशाओं से, व्याघात की अपेक्षा से कदाचित् तीन दिशाओं से कदाचित् चार दिशाओं से और कदाचित् पांच दिशाओं से (पुद्गलों का चय होता है।) 1554. बेउब्धियसरीरस्स णं भंते ! कतिविसि पोग्गला चिज्जति ? गोयमा ! णियमा छहिसि / [1554 प्र.] भगवन्! वैक्रियशरीर के लिए कितनी (दिशाओं से पुद्गलों का चय होता है ? [उ.] गौतम! नियम से छह दिशाओं से (पुद्गलों का चय होता है / ) 1555. एवं आहारगसरीरस्स वि / [1555] इसी प्रकार (वैक्रियशरीर के समान) आहारकशरीर के पुद्गलों का चय भी नियम से छह दिशाओं से होता है / ) 1556. तेया-कम्मगाणं जहा पोरालियसरीरस्स (सु. 1553) / (1556] तैजस और कार्मण (शरीर के पुद्गलों का चय) [सू.१५५३ में उक्त] प्रौदारिक शरीर के (पुद्गलों के चय के) समान (समझना चाहिए / ) 1557. ओरालियसरीरस्स णं भंते ! कतिदिसि पोग्गला उवचिज्जति ? गोयमा ! एवं चेक, जाव कम्मगसरीरस्स / [1557 प्र०] भगवन्! औदारिक शरीर के पुद्गलों का उपचय कितनी दिशाओं से होता है ? [उ.] गौतम! (जैसे चय के विषय में कहा था, ) इसी प्रकार (उपचय के विषय में भी औदारिकशरीर से लेकर) यावत् कार्मणशरीर (तक कहना चाहिए / ) 1558. एवं उवचिज्जति (?) अवचिज्जति / [1558] (प्रौदारिक आदि पांचों शरीरों के पुद्गलों का जिस प्रकार ) उपचय होता है, उसी प्रकार (उनका) अपचय भी होता है / विवेचन-पांचों शरीरों के पुद्गलों के चय, उपचय-अपचय-सम्बन्धी विचारणा–प्रस्तुत चतुर्थ द्वार में 6 सूत्रों (1553 से 1558 तक ) में औदारिक आदि पांचों शरीरों के पुद्गलों के चय, उपचय एवं अपचय से सम्बन्धित विचारणा की गई है / चय उपचय और अपचय की परिभाषा-चय का अर्थ है-पुद्गलों का संचित होना-समुदित या एकत्रित होना / उपचय का अर्थ है-प्रभूतरूप से चय होना, बढ़ना, वृद्धिंगत होना / अपचय का अर्थ है-पुद्गलों का ह्रास होना, घट जाना या हट जाना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org