Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ इक्कीसवां अवगाहनासंस्थानपद] [उ.] गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा से सबसे अल्प आहारक शरीर है। (उनसे) वै क्रिय शरीर, द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणा हैं / (उनसे) औदारिक शरीर द्रव्य की अपेक्षा से, असंख्यातगुणा हैं / तैजस और कार्मण शरीर दोनों तुल्य (बराबर) हैं,(किन्तु औदारिक शरीर से) द्रव्य की अपेक्षा से अनन्तगुणा हैं / प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम प्रदेशों की अपेक्षा से पाहारक शरीर हैं। (उनसे) प्रदेशों की अपेक्षा से वैक्रिय शरीर असंख्यातगुणा हैं। (उनसे) प्रदेशों की अपेक्षा से औदारिक शरीर असंख्यातगुणा हैं / (उनसे) तैजस शरीर प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणा हैं, (उनसे) कार्मण शरीर प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणा हैं। द्रव्य एवं प्रदेशों की अपेक्षा से---द्रव्य की अपेक्षा से, सबसे अल्प हैं-आहारक शरीर / (उनसे) वैक्रिय शरीर द्रव्यों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं। (उनसे) औदारिक शरीर, द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं। प्रौदारिक शरीरों से द्रव्य की दृष्टि से आहारक शरीर, प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणा हैं : (उनसे) वैक्रिय शरीर, प्रदेशों को अपेक्षा से असंख्यातगुणा हैं। (उनसे) औदारिक शरीर, प्रदेशों की अपेक्षा से, असंख्यातगुणा हैं। तैजस और कार्मण, दोनों शरीर, द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य (बराबर-बराबर) हैं; तथा द्रव्य की अपेक्षा से अनन्तगुणे हैं। (उनसे) तैजस शरीर प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणा हैं / (उनसे) कार्मण शरीर प्रदेशों से अनन्तगुणा हैं / विवेचन-शरीरों को अल्पबहत्वविचारणा : द्रव्य, प्रदेश तथा द्रव्य और प्रदेश को दष्टि से प्रस्तुत सूत्र (1565) में पूर्वोक्त पांचों शरीरों के, अल्पबहुत्व की विचारणा को गई है / स्पष्टीकरण-द्रव्यापेक्षया अर्थात् शरीरमात्र द्रव्य की संख्या की दृष्टि से सबसे अल्प पाहारक शरीर इसलिए हैं कि आहारक शरीर उत्कृष्ट संख्यात हों तो भी सहस्र पृथक्त्व (दो हजार से नौ हजार तक) ही होते हैं / समस्त आहारक शरीरों की अपेक्षा वैक्रिय शरीर, द्रव्यदृष्टि से असंख्यातगुणा अधिक होते हैं, क्योंकि सभी नारकों, सभी देवों, कतिपय तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों, कतिपय मनुष्यों एवं बादर वायुकायिकों के वैक्रियशरीर होते हैं। समस्त वैक्रिय शरीरों की अपेक्षा औदारिक शरीर द्रव्यदृष्टि से (शरीरों की संख्या की दृष्टि से) असंख्यातगुणा अधिक होते हैं, क्योंकि प्रौदारिक शरीर समस्त पंच स्थावरों, तीन विकलेन्द्रियों, पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों और मनुष्यों के होते हैं। और फिर पृथ्वीअप्-तेज-वायु-वनस्पतिकायिकों में से प्रत्येक असंख्यात लोकाकाश-प्रमाण हैं / तैजस और कार्मग दोनों शरीर संख्या में समान हैं, फिर भी वे श्रीदारिक शरीरों की अपेक्षा संख्या में अनन्तगुणे हैं, क्योंकि औदारिक शरीरधारियों के उपरान्त वैक्रिय शरीरधारियों के भो तैजस-कार्मण शरीर होते हैं। तथा सूक्ष्म एवं बादर निगोद जोव अनान्तानन्त हैं, उनके प्रौदारिक शरीर एक होता है किन्तु तैजस-कार्मण शरीर पृथक्-पृथक होते हैं।' प्रदेशों (शरीर के प्रदेशों-परमाणुओं) की दृष्टि से विचार किया जाए तो सबसे कम आहारक शरीर हैं, क्योंकि सहस्र पृथक्त्व संख्या वाले आहारक शरीरों के प्रदेश अन्य सभी शरीरों के प्रदेशों की अपेक्षा कम ही होते हैं। यद्यपि वैक्रियवर्गणाओं की अपेक्षा आहारकवर्गणा परमाणुओं 1. (क) प्रज्ञापना, मलयवत्ति, पत्र 433-434 / (ख) प्रज्ञापना, प्रमेयबोधिनी टीका, भा. 4, पृ 822-823 Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org