________________ 474] [प्रज्ञापनासूत्र जिस होता है, शेष प्रौदारिक शरीरधारी मनुष्यों को नहीं होता। इसी प्रकार जिसके पाहारक शरीर होता है, उसके औदारिक शरीर अवश्य होता है, क्योंकि औदारिक शरीर के बिना आहारकलब्धि नहीं होती। वैक्रिय शरीर के साथ प्राहारक शरीर या पाहारकशरीर के साथ वैक्रियशरीर कदापि संभव नहीं है / (3) जिसके औदारिक होता है, उसके तैजस कार्मण शरीरों का होना अवश्यम्भावी है, किन्तु जिसके तैजस-कामण शरीर होते हैं, उसके औदारिक शरीर होता भी है, नहीं भी होता, क्योंकि देवों और नारकों के तैजस-कार्मण शरीर होते हुए भी औदारिक शरीर नहीं होता। इसी प्रकार जिस जीव के वैक्रिय शरीर होता है, उसके तैजस कार्मण शरीर अवश्य होते हैं, किन्तु जिस जीव के तैजस कार्मण शरीर होते हैं उसके वैक्रिय शरीर होता भी है, नहीं भी होता, क्योंकि देव-नारकों के तैजस-कार्मण शरीर होते हैं और वैक्रिय शरीर भी प्रत्येक देव का होता है किन्तु तिर्यञ्चों और मनुष्यों के क्रिय शरीर जन्म से नहीं होता, मगर तैजस-कार्मण शरीर तो अवश्य हो शरीर जिसके होता है, उसके औदारिक होता भी है, नहीं भी होता, क्योंकि मनुष्य-तिर्यञ्च के औदारिक शरीर होता है, तैजस शरीर भी, जबकि वैक्रिय शरीरी देवों-नारकों के तेजस शरीर तो होता ही है, किन्तु औदारिक नहीं होता। इसो प्रकार जिसके प्रौदारिक शरीर होता है, उसके तैजसकार्मण शरीर अवश्यम्भावी होते हैं, क्योंकि तेजस कार्मण शरीर के बिना औदारिक शरीर असम्भव है। इसी प्रकार तैजस और कार्मण दोनों परस्पर अविनाभावी हैं। जिसके तैजस शरीर होगा, उसके कार्मण शरीर अवश्य होगा। जिसके कार्मणशरीर होगा, उसके तैजस अवश्य होगा / 44 6. द्रव्य-प्रदेश-अल्पबहुत्वद्वार 1565. एतेसि णं भंते ! ओरालिय-वेउब्विय-आहारग-तेया-कम्मगसरीराणं दन्वट्ठयाए पएसट्टयाए दवट्ठपएसट्ठयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा 4 ? पोरालियसरीरा दवट्ठयाए असंखेज्जगुणा, तेया-कम्मगसरीरा दो वि तुल्ला दवट्टयाए अणंतगुणा; पएसट्टयाए-सव्वत्थोवा आहारगसरोरा पएसट्टयाए, वेउब्वियसरीरा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, ओरालियसरीरा पदेसट्ठयाए प्रसंखेज्जगुणा, तेयगसरीरा पदेसट्टयाए अणंतगुणा, कम्मगसरोरा पदेसट्टयाए प्रणतगुणा; दवटुपदेसट्टयाए-सम्वत्थोवा आहारगसरोरा दवट्ठयाए, वेउब्वियसरीरा दवट्ठयाए असंखेज्जगुणा, ओरालियसरीरा दवट्टयाए असंखेज्जगुणा, ओरालियसरीरेहितो दवट्ठयाए आहारगसरीरा पएसट्टयाए अणंतगुणा, वेउब्वियसरीरा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, पोरालियसरीरा पदेसटुयाए असंखेज्जगुणा, तेया-कम्मगसरीरा दो वि तुल्ला दवट्ठयाए अणंतगुणा, तेयगसरोरा पदेसट्टयाए अणंतगुणा, कम्मगसरोरा पदेसट्टयाए अणंतगुणा। [1565 प्र. भगवन् ! औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण, इन पांच शरीरों में से, द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से, कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? 44. (क) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र 432 (ख) प्रज्ञापना. प्रमेयबोधिनीटीका भा-४ पृ.८१२-८१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org