Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 472] [प्रशापनासूत्र [1559 प्र.] भगवन् ! जिस जीव के औदारिक शरीर होता है, क्या उसके वैक्रिय शरीर (भी) होता है ? (और) जिसके वैक्रिय शरीर होता है, क्या उसके प्रौदारिक शरीर (भी) होता है ? [उ.] गौतम ! जिसके औदारिक शरीर होता है, उसके वैक्रिय शरीर कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं होता, (और) जिसके वैक्रिय शरीर होता है, उसके औदारिक शरीर कदाचित् होता है, (तथा) कदाचित् नहीं होता। 1560. जस्स णं भंते ! पोरालियसरीरं तस्स प्राहारगसरीरं ? जस्स प्राहारगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं? गोयमा! जस्स ओरालियसरीरं तस्स आहारगसरीरं सिय अस्थि सिय णत्थि, जस्स पुण पाहारगसरीरं तस्स पोरालियसरीरं णियमा अस्थि / [1560 प्र.] भगवन ! जिसके प्रौदारिक शरीर होता है, क्या उसके आहारक शरीर होता है ? तथा जिसके आहारक शरीर होता है उसके औदारिक शरीर होता है ? [उ.] गौतम ! जिसके औदारिक शरीर होता है, उसके आहारक शरीर कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता / किन्तु जिस जीव के आहारक शरीर होता है उसके नियम से औदारिक शरीर होता है। 1561. जस्स गं भंते ओरालियसरीरं तस्स तेयगसरीरं ? जस्स तेयगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं? गोयमा ! जस्स ओरालियसरीरं तस्स तेयगसरीरं णियमा अस्थि, जस्स पुण तेयगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं सिय अस्थि सिय णस्थि / [1561 प्र.] भगवन् ! जिसके औदारिक शरीर होता है, क्या उसके तैजस शरीर होता है ? तथा जिसके तैजस शरीर होता है, क्या उसके औदारिक शरीर होता है ? [उ.] गौतम ! जिसके औदारिक शरीर होता है, उसके नियम से तैजस शरीर होता है, और जिसके तैजस शरीर होता है, उसके औदारिक शरीर कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं (भी) होता। 1562. एवं कम्मगसरीरं पि: [1562] (औदारिक शरीर के साथ तैजस शरीर के संयोग के समान, औदारिक शरीर के साथ) कार्मण शरीर का संयोग भी समझ लेना चाहिए / 1563. [1] जस्स गं भंते ! वेउब्वियसरीरं तस्स आहारगसरीरं? जस्स आहारगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं? गोयमा ! जस्स वेउब्वियसरीरं तस्साहारगसरीरं णस्थि, जस्स वि य आहारगसरीरं तस्स वि वेउव्वियसरीरं णस्थि / _[1663-1 प्र.] भगवन् ! जिसके वैक्रिय शरीर होता है, क्या उसके आहारक शरीर होता है ? तथा जिसके प्राहारक शरीर होता है, उसके वैक्रिय शरीर भी होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org