________________ इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान-पद पाहारक शरीर में संस्थानद्वार 1534. आहारगसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णते ? गोयमा ! समचउरंससंठाणसंठिए पण्णत्ते / [1534 प्र.] भगवन् ! अाहारकशरीर किस संस्थान (आकार) का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) समचतुरस्रसंस्थान वाला कहा गया है / विवेचन--आहारकशरीर का आकार-पाहारकशरीर एक ही प्रकार का होता है और उसका संस्थान एक ही प्रकार का-'समचतुरस्र' कहा गया है / पाहारक शरीर में प्रमाणद्वार 1535. आहारगसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? गोयमा ! जहण्णणं देसूणा रयणी, उक्कोसेणं पडिपुष्णा रयणी। [1535 प्र.भगवन् ! पाहारशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है ? [उ.] गौतम ! (उसको अवगाहना) जघन्य देशोन (कुछ कम) एक हाथ की, उत्कृष्ट पूर्ण एक हाथ की होती है। विवेचन-आहारकशरीर की अवगाहना-प्रस्तुत सूत्र में आहारकशरीर की ऊँचाई का प्रमाण (अवगाहना) बताया गया है / प्राहारकशरीर का प्रमाण-उसकी कम से कम अवगाहना, कुछ कम एक रत्लि प्रमाण (एक हाथ) बतायी गयी है। प्रारम्भ समय में उसकी इतनी ही अवगाहना होती है, उसका कारण तथाविध प्रयत्न है / आहारकशरीर को उत्कृष्ट अवगाहना पूर्ण रत्नि प्रमाण बताई गई है।' तेजस शरीर में विधिद्वार 1536. तेयगसरीरे गं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते / तं जहा--एगिदियतेयगसरीरे जाव पंचेंदियतेयगसरीरे / (1536 प्र.] भगवन् ! तैजसशरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) पांच प्रकार का कहा गया है / वह इस प्रकार -एकेन्द्रिय तैजसशरीर यावत् पंचेन्द्रिय तेजसशरीर / 1537. एगिदियतेयगसरीरे णं भंते ! कतिविहे पणते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते / तं जहा-पुढविक्काइय जाव वणप्फइकाइयएगिदियतेयगसरीरे / [1537 प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय तैजसशरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) पांच प्रकार का कहा गया है। यथा-पृथ्वीकायिक-तैजसशरीर यावत् वनस्पतिकायिक-तैजसशरीर / 1. प्रज्ञापना, मलयवृत्ति, पत्र 425-426 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org