________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] हैं, उतने ही इनके तैजसशरीरगत भेद कहने चाहिए।' तेजसशरीर में संस्थानद्वार 1540. तेयगसरीरे णं भंते ! किसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते / [1540 प्र.] भगवन् ! तैजसशरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) नाना संस्थान वाला कहा गया है / 1541. एगिदियतेयगसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते। [1541 प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय-तैजसशरीर किस संस्थान का होता है ? [उ. गौतम ! (वह) नाना प्रकार के संस्थान वाला होता है / 1542. पुढविक्काइयएगिदियतेयगसरीरे गं भंते ! किसंठिए पण्णते ? गोयमा ! मसूरचंदसंठाणसंठिए पण्णत्ते। [1542 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय तैजसशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ? [उ.} गौतम ! (वह) मसूरचन्द्र (मसूर की दाल) के आकार का कहा गया है / 1543. एवं ओरालियसंठाणाणुसारेणं भाणियन्वं (सु. 1490-96) जाव चरिदियाणं ति / [1543] इसी प्रकार (अन्य एकेन्द्रियों से लेकर) यावत् चतुरिन्द्रियों (तक) के (तेजसशरीरसंस्थान का कथन) (सू. 1460 से 1466 तक में उक्त) इनके औदारिक शरीर-संस्थानों के अनुसार करना चाहिए। 1544. [1] जेरइयाणं भंते ! तेयगसरीरे किसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! जहा वेउब्वियसरीरे (सु. 1523) / [1544-1 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों का तेजसशरीर किस संस्थान का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! जैसे (सू. 1523 में) (इनके) वैक्रियशरीर (के संस्थान) का (कथन किया गया है; (उसी प्रकार इनके तैजसशरोर के संस्थान का कथन करना चाहिए।) [2] पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं मणसाण य जहा एतेसि चेव ओरालिय त्ति (सु. 1524. 25) / [1544-2J पंचेन्द्रियतिर्यध्वयोनिकों और मनुष्यों के (तैजसशरीर के संस्थान का कथन उसी प्रकार करना चाहिए।) जिस प्रकार (सू. 1524-1525 में) इनके औदारिकशरीरगत संस्थानों का कथन किया गया है। 1. (क) पण्णवणासुतं, (प्रस्तावनादि) भा. 2, पृ. 118 (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र 427 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org