________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] [1551-4 प्र.] भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत सनत्कुमार देव के तैजसशरीर को अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है ? [उ.] गौतम! विष्कम्भ एवं बाहल्य की अपेक्षा से शरीर-प्रमाणमात्र (होती है) (और) अायाम की अपेक्षा से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की (नथा) उत्कृष्ट नीचे महापाताल(कलश) के द्वितीय विभाग तक की, तिरछी स्वयम्भूरमणसमुद्र तक की (और) ऊपर अच्युतकल्प तक की (इसकी तैजसशरीरावगाहना होती है / ) [5] एवं जाव सहस्सारदेवस्स / [1551-5] इसी प्रकार (सनत्कुमारदेव को तैजसशरीरीय अवगाहना के समान) (माहेन्द्रकल्प से लेकर) सहस्रारकल्प के देवों तक की (तैजसशरीरावगाहना समझ लेना चाहिए / ) [6] आणयदेवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयस्स तेयासरोरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ-बाहल्लेणं; आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभार्ग, उक्कोसेणं अहे जाव अहेलोइयगामा, तिरियं जाव मणूसखेत्ते, उड्डेजाव अच्चुओ कम्पो। [1551-6 प्र.] भगवन्! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत पानत (कल्प के) देव के तैजस शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है ? [उ.] गौतम! (इसकी तैजसशरीरावगाहना) विष्कम्भ और बाहल्य की अपेक्षा से शरीर के प्रमाण के बराबर होती है और पायाम की अपेक्षा से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की, उत्कृष्ट-नीचे की ओर-अधोलौकिकग्राम तक की, तिरछी मनुष्यक्षेत्र तक की (और) ऊपर अच्युतकल्प तक की (होती है।) [7] एवं जाव पारणदेवस्स / [1551-7] इसी प्रकार (मानतदेव को तैजसशरीरावगाहना के समान) यावत् प्राणत और पारण तक की (तैजसशरीरावगाहना समझ लेनी चाहिए।) [8] अच्चुयदेवस्स वि एवं चेव / गवरं उड्डेजाव सगाई विमाणाई। [1551-8] अच्युतदेव की (तैजसशरीरावगाहना) भी इन्हीं के समान होती है। विशेष इतना ही है कि ऊपर (उत्कृष्ट तैजसशरीरावगाहना) अपने-अपने विमानों तक को होती है। [9] गेवेज्जगदेवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता! गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ-बाहल्लेणं; पायामेणं जहण्णणं विज्जाहरसेढीओ, उक्कोसेणं जाव अहेलोइयगामा, तिरियं जाव मणूसखेत्ते, उड्ड जान सगाई बिमाणाई। [1551-6 प्र.] भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत ग्रेवेयकदेव के तेजसशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है ? [उ.] गौतम ! विष्कम्भ और बाहल्य की अपेक्षा से शरीरप्रमाणमात्र होती है; (तथा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org