________________ [प्रज्ञापनासूत्र [उ.] गौतम! जैसे (सू. 1547-1 में) द्वीन्द्रिय (के तैजस शरीर ) की (अवगाहना कही गई है, उसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक की अवगाहना समझनी चाहिए / ) 1550. मणसस्स गं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? गोयमा! समयखेत्ताओ लोगतो। [1550 प्र.] भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत मनुष्य के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है ? [उ.] गौतम! (मनुष्य के तेजसशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना) समयक्षेत्र (मनुष्यक्षेत्र) से लोकान्त (ऊर्ध्वलोक या अधोलोक के अन्त) तक (की होती है !) 1551. [1] असुरकुमारस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? ___ गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ-बाहल्लेणं, आयामेणं जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं अहे जाव तच्चाए पुढवीए हेष्टुिल्ले चरिमंते, तिरियं जाव सयंभुरमणसमुदस्स बाहिरिल्ले वेइयंते, उड्ढे जाव इसीपउभारा पुढवी। [1551-1 प्र.] भगवन्! मारणान्तिक समुद्घात से समवहत असुरकुमार के तैजसशरीर को अवगाहना कितनी कही गई है ? [उ.] गौतम! विष्कम्भ और बाहल्य की अपेक्षा से शरीरप्रमाणमात्र (शरीर के बराबर), (तथा) अायाम की अपेक्षा से जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की (और) उत्कृष्ट नीचे की ओर तीसरी (नरक)पृथ्वी के अधस्तन चरमान्त तक, तिरछी स्वयम्भूरमण समुद्र तक, एवं ऊपर ईषत्प्रा-ग्भारपृथ्वी तक (असुरकुमार के तैजसशरीर की अवगाहना होती है / ) [2] एवं जाव थणियकुमारतेयगसरोरस्स। [1551-2 | इसी (असुर कुमार के तैजसशरीर की अवगाहना) के समान (नागकुमार से लेकर) यावत् स्तनितकुमार (तक) की (तैजसशरीरीय अवगाहना समझ लेनी चाहिए / ) [3] वाणमंतर-जोइसिया सोहम्मीसाणगा य एवं चेव / [1551-3] वानव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं सौधर्म ईशान (कल्प के देवों को तैजसशरीरीय अवगाहना भी इसी प्रकार (असुरकुमार के समान समझनी चाहिए / ) [4] सणकुमारदेवस्स णं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स तेयासरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा! सरीरपमाणमेत्ता विक्खंभ-बाहल्लेणं; आयामेणं जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइमार्ग, उक्कोसेणं अहे जाव महापातालाणं दोच्चे तिभागे, तिरियं जाव सयंभुरमणसमुद्दे, उड्डेजाव अच्चुभो कप्पो / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org