Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [प्रज्ञापनासूत्र आयाम की अपेक्षा से जघन्य विद्याधरश्रेणियों तक की (और) उत्कृष्ट नीचे की ओर अधोलौकिकग्राम तक की, तिरछी मनुष्यक्षेत्र तक की, और ऊपर अपने विमानों तक की (होती है / ) [10] अणुत्तरोक्वाइयस्स वि एवं चेव / [1551-10] अनुत्तरौपपातिक देव की तैजसशरीरावगाहना भी इसी प्रकार (गवेयकदेव की तैजसशरीरावगाहना के समान समझनी चाहिए / ) विवेचन-सभी जीवों की तैजसशरीरावगाहना-प्रस्तुत 7 सूत्रों (सू. 1545 से 1551 तक) में विभिन्न सांसारिक जीवों के तैजसशरीर को अवगाहना जब वह मारणान्तिक समुद्घात किया हुआ हो, उस समय की अपेक्षा से प्रतिपादित की गई है। मारणान्तिक समुद्घात से समवहत जीव की तैजसशरीरावगाहना की तालिका इस प्रकार है विष्कम्भ-बाहत्य तेजसशरीरी जीव के नाम की अपेक्षा से आयाम की अपेक्षा से जघन्य-उत्कृष्ट ज. ज. 1. समुच्चय जीवों की तै. श. अ. शरीरप्रमाणमात्र ज, अंगुल के असंख्यातवें भाग की, उ. लोकान्त से लोकान्तक तक 2. एकेन्द्रियों की तै. श. अ. 3. विकलेन्द्रिय की तै. श. अ. " उ. तिर्यक्लोकान्त तक 4. नारकों की , , , ज. सातिरेक सहस्रयोजन की उ. अधः-सप्तमनरक तक, तिर्यक्-स्वयमभूरमण समुद्र तक और ऊपर पंडक बन की पुष्करिणी तक की 5. तिर्यचपंचेन्द्रियों की ज. अंगुल के असं. भाग, उ. तिर्यक् लोकान्त तक 6. मनुष्यों की तै. श. अ. , उ. मनुष्यक्षेत्र तक 7. भवनपति, वानव्यन्तर उ. नीचे-तीसरी ज्योतिष्क और सौधर्म ईशान नरक के अधस्तन चरमान्त तक, तिरछी स्वमम्भू रमण तक ऊपर ईषत्प्रागाभारा पृथिवी तक / 8. सनत्कुमार से सहस्रार देव तक ज. अंगुल के असं. भाग, उ. नीचे-अधोलौकिग्राम तक तिरछी--स्वयम्भूरमण तक, ऊपर-अच्यु तकल्प तक। 6. आनत-प्राणत-पारण देव की ज. अंगुल के असं. भाग, उ. नीचे-अधोलौकिकग्राम तक, तिरछी-मनुष्यक्षेत्र तक, ऊपर--अच्युतकल्प तक 10. अच्युतदेव की ऊपरस्वकीयविमान तक 11. ग्रैवेयक एवं अनुत्तर विमान ज. विद्याधरश्रेणी तक, उत्कृष्ट -नीचे अधोलौकिक देव की ग्राम तक, तिरछी-मनुष्यक्षेत्र तक, ऊपर--स्ववि मान तक' 1. पण्णवणासुतं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. 1 पृ. 345-346 देव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org