________________ इक्कीसवां : अवगाहना-संस्थान-पद] [457 शरीर होता है, (किन्तु) न तो मिथ्यादष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-कर्मभूमिक-गर्भज मनुष्यों के होता है और न ही सम्यग्-मिथ्यादृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्म-भूमिक-गर्भज-मनुष्यों के होता है। [8] जदि सम्महिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगठभवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे कि संजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे असंजयसम्मद्दिट्टिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसमाहारगसरीरे संजतासंजतसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे ? गोयमा ! संजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणसआहारगसरीरे, णो असंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसमाहारगसरीरे णो संजयासंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कैतियमणूसआहारगसरीरे। __ [1533-8 प्र.] (भगवन् ! ) यदि सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भजमनुष्यों के ग्राहारक शरीर होता है, तो क्या संयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिकगर्भज-मनुष्यों के होता है, या असंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भजमनुष्यों के होता है, अथवा संयतासंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के होता है ? _ [उ.] गौतम ! संयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के आहारक शरीर होता है, (किन्तु) न (तो) असंयत-सम्यग्दष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिकगर्भज-मनुष्यों के होता है, (और) न ही संयतासंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिकगर्भज मनुष्यों के होता है / _ [9] जदि संजतसम्मद्दिष्टुिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे किं पमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे अपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे ? गोयमा ! पमत्तसंजयसम्मद्दिटिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसाहारगसरोरे, णो अपमत्तसंजतसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे / _ [1533-6 प्र.] ( भगवन्! ) यदि संयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज मनुष्यों के प्राहारक शरीर होता है तो क्या प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक-गर्भज मनुष्यों के होता है, अथवा अप्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्म-भूमिक-गर्भज मनुष्यों के होता है ? [उ.] गौतम! प्रमत्त-संयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज मनुष्यों के ग्राहारक शरीर होता है अप्रमत्त-संयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज मनुप्यों के नहीं होता। _ [10] जदि पमत्तसंजयसम्मदिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपाहारगसरोरे किं इड्पित्तपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगमवक्कंतियमणूस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org