________________ इक्कीसवां अवगाहनासंस्थानपद] [455 विजयादि चार अनुत्तरविमानवासी जिन देवों की स्थिति 31 सागरोपम की है, उनकी भ. . उ. अवगाहना 2 हाय को होतो है। विजयादि चार अनुत्तरविमानवासी जिन देवों की मध्यम स्थिति 32 सागरोपम की होती है उनकी भ. उ. अवगाहना 1 हाथ और ', हाथ की होती है / तथा सर्वार्थसिद्ध विमान में देवों की स्थिति 33 सागरोपम की होती है, उनकी अवगाहना 1 हाथ को होती है।' 1533. [1] आहारगसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते / [1533-1 प्र.] भन्ते ! आहारकशरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! वह एक ही प्रकार का कहा गया है / [2] जदि एगागारे पण्णत्ते कि मणूसआहारयसरोरे अमणूसआहारगसरोरे ? गोयमा ! मणूसआहारगसरीरे, णो अमणूसआहारगसरीरे। [1533-2 प्र.] (भगवन् ! ) यदि पाहारक शरीर एक ही प्रकार का कहा गया है तो वह आहारकशरीर मनुष्य के होता है (अथवा) अमनुष्य के होता है ? [उ.] गौतम ! मनुष्य के प्राहारकशरीर होता है, किन्तु (मनुष्येतर) के आहारक शरीर नहीं होता। [3] जदि मणूसआहारगसरोरे कि सम्मुच्छिममणूसाहारगसरोरे गमवक्कंतियमणूस. आहारगसरीरे ? गोयमा ! णो सम्मुच्छिममणूसाहारगसरीरे, गभवक्कंतियमणूसाहारगसरीरे / [1533-3 प्र.] (भगवन् ! ) यदि मनुष्य के प्राहारक शरीर होता है तो क्या सम्मूच्छिमनुष्य के होता है, या गर्भजमनुष्य के होता है ? [उ.] गौतम ! सम्मूच्छिम-मनुष्य के आहारक शरीर नहीं होता, (अपितु) गर्भज मनुष्य के ग्राहारक शरीर होता है। [4] जदि गब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे कि कम्मभूमागभवातियमणूसाहारगसरीरे अकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरोरे अंतरदीवगगभवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे ? गोयमा! कम्मभूमगगभवतियमगूसाहारगसरोरे, णो अम्मभूमग गम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे णो अंतरदोवगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे / [1533-4 प्र.] (भगवन् ! ) यदि गर्भज मनुष्य के प्राहारक शरीर होता है तो क्या कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्य के प्राहारक शरीर होता है, अकर्म-भूमिक गर्भज मनुष्य के होता है, अथवा अन्तर-द्वीपज मनुष्य के होता है ? [1533.4 उ.] गौतम ! कर्म भूमिक-गर्भज-मनुष्य के आहारक शरीर होता है, किन्तु न तो अकर्म-भूमिक-गर्भज मनुष्य के होता है और न अन्तरद्वीप-गर्भज मनुष्य के होता है। . 1. प्रज्ञापना, मलय-वृत्ति, पत्र 421 से 423 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org