________________ 456] [प्रज्ञापनासूत्र [5] जदि कम्मभूमगमभववतियमणूसआहारगसरीरे कि संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवकंतियमणूसआहारगसरीरे असंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे? गोयमा ! संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे, णो असंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगभवतियमणूस आहारगसरीरे / [1533-5 प्र. (भगवन् ! ) यदि कर्मभूमिक गर्भज मनुष्य के प्राहारक शरीर होता है, तो क्या संख्यातवर्षायुष्ककर्मभूमिक गर्भज मनुष्य के होता है या असंख्यात-वर्षायुष्क-कर्म भूमिक-गर्भज मनुष्य के होता है ? [उ.] गौतम ! संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिकगर्भजमनुष्य के प्राहारक शरीर होता है, किन्तु भसंख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्य के नहीं होता। [6] जदि संखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणसआहारगसरीरे कि पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपाहारगसरोरे अपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे? गोयमा ! पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगभवक्कंतियमणसमाहारगसरीरे, णो अपज्जतगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे / [1533-6 प्र.] (भगवन् ! ) यदि संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के प्राहारक शरीर होता है, (तो) क्या प्रर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के होता है, (अथवा) अपर्याप्तक-संख्यात-वर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्य के होता है। [उ.] गौतम ! पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के प्राहारक शरीर होता है, किन्तु अपर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के नहीं होता। [7] जदि पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे किं सम्मदिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगन्भवतियमणूसआहारगसरीरे मिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे सम्मामिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे ? गोयमा ! सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणसमाहारगसरीरे, णो मिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणसआहारगसरीरे णो सम्मामिच्छद्दिट्ठिपज्जत्तगसंखेज्जबासाउयकम्मभूमगगमवक्कंतियमणूसआहारगसरीरे। [1533-7] (भगवन् !) यदि पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज मनष्यों के पाहारक शरीर होता है, तो क्या सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज मनुष्यों के प्राहारक शरीर होता है, मिथ्यादृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्यों के होता है, अथवा सम्यग-मिथ्यादृष्टि-पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज मनुष्यों के होता है ? [उ.] गौतम ! सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक-संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक-गर्भज मनुष्यों के आहारक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org