Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 452] [प्रज्ञापनासूत्र शर्कराप्रभापृथ्वी के नारकों की जो भवधारणीय उत्कृष्ट शरीरावगाहना 15 धनुष, 21 // हाथ की बताई है, वह ग्यारहवें प्रस्तट की अपेक्षा से समझनी चाहिए। क्रमश: अन्य प्रस्तटों की अवगाहना इस प्रकार है---प्रथम प्रस्तट में 7 धनुष, 3 हाथ, 6 अंगुल की ; दूसरे प्रस्तट में 8 धनुष, 2 हाथ, 6 अंगुल की; तीसरे प्रस्तट में 6 धनुष, 1 हाथ, 12 अंगुल की; चौथे में 10 धनुष, 15 अंगुल की; पांचवें प्रस्तट में 10 धनुष, 3 हाथ, 18 अंगुल की ; छठे प्रस्तट में 11 धनुष, 2 हाथ, 21 अंगुल की; सातव में 12 धनुष, 2 हाथ की; आठवें प्रस्तट में 13 धनुष, 1 हाथ, 3 अंगुल की; नौवें प्रस्तट में 14 धनुष, 6 अंगुल की; दसवें प्रस्तट में 14 धनुप, 3 हाथ और 6 अंगुल को तथा ग्यारहवें प्रस्तट में पूर्वोक्त शरीरावगाहना समझनी चाहिए। बालुकाप्रभापृथ्वी के नारकों की जो भवधारणीय उत्कृष्ट शरीरावगाहना 31 धनुष, 1 हाथ बताई है, वह नौवे प्रस्तट की अपेक्षा से समझनी चाहिए। अन्य प्रस्तटों में अवगाहना इस प्रकार है--प्रथम प्रस्तट में 15 धनुष, 2 हाथ, 12 अंगुल की, दूसरे प्रस्तट में 17 धनुष, 2 हाथ, 7 // अंगुल की; तीसरे प्रस्तट में 14 धनुष, 2 हाथ,३ अंगल को चौथे प्रस्तट में 21 धनष, 1 हाथ 22 // अंगुल की; पांचवें प्रस्तट में 23 धनुष, 1 हाथ, 18 अंगुल को; छठे प्रस्तट में 25 धनुष, 1 हाथ, 133 अंगुल की; सातवें प्रस्तट में 27 धनुष, 1 हाथ, अंगूल की; पाठवें प्रस्तट में 26 धनुष, 1 हाथ, 4 // अंगुल की; और नौवें प्रस्तट में पूर्वोक्त शरीरावगाहना समझनी चाहिए / पंकप्रभा पृथ्वो में उत्कृष्ट भवधारणीय शरीरावगाहना 62 धनुष 2 हाथ की बताई गई है, वह सातव प्रस्तट में जाननी चाहिए। अन्य प्रस्तटों में अवगाहना इस प्रकार है-प्रथम प्रस्तट में 31 धनुष, 1 हाथ की; दूसरे प्रस्तट में छत्तीस धनुष 1 हाथ, 20 अंगुल की ; तीसरे प्रस्तट में 41 धनुष, 2 हाथ, 16 अंगुल की; चौथे प्रस्तट में 46 धनुष, 3 हाथ, 12 अंगुल की; पांचवें प्रस्तट में 52 धनुष, 8 अंगुल की : छठे प्रस्तट में 57 धनुष, 1 हाथ, 4 अंगुल की; और सातवें प्रस्तट में पूर्वोक्त अवगाहना होती है / धूमप्रभापृथ्वी में उत्कृष्ट भवधारणीय शरीरावगाहना 125 धनुष को बताई है, वह पंचम प्रस्तट की अपेक्षा से समझनी चाहिए। इसके प्रथम प्रस्तट में 62 धनुष 2 हाथ की, दूसरे में 78 धनुष, 1 बितस्ति (बीता), तीसरे में 63 धनुष, 3 हाथ, चौथे प्रस्तट (पाथड़े) में 106 धनुष, 1 हाथ और बिनस्ति, और पांचवें प्रस्तट में पूर्वोक्त अवगाहना समझनी चाहिए। तमःप्रभापृथ्वी के नारकों की उत्कृष्ट भवधारणीय अवगाहना 250 धनुष को है, वह तृतीय पाथड़े की अपेक्षा से है। अन्य पाथड़ों का परिमाण इस प्रकार है-प्रथम पाथड़े में 125 धनुष की, दूसरे पाथड़े में 187 / / धनुष की, और तीसरे पाथड़े की अवगाहना पूर्वोक्त परिमाण वाली है। तमस्तमापृथ्वी के नारकों की उत्कृष्ट भवधारणीय शरीरावगाहना 500 धनुष की कही गई है। रत्नप्रभापृथ्वी को उत्तरवैक्रिय-शरीरावगहना उत्कृष्टतः 15 धनुष 18 हाथ की होती है, यह अवगाहना 13 वें पाथड़े में पाई जाती है। अन्य पाथड़ों में पूर्वोक्त भवधरणीय शरीरावगाहना के परिमाण से दुगुनी समझनी चाहिए। शर्कराप्रभापृथ्वी की उत्तरवैक्रियशरीरावगाहना उत्कृष्ट 31 धनुष 1 हाथ की होती है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org