Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 450] [प्रज्ञापनासूत्र [7] एवं अणुत्तरोववाइयदेवाण वि / णवरं एक्का रयणी। [1532-7] इसी प्रकार अनुत्तरौपपातिक देवों की भी (भवधारणीया शरीरावगाहना जघन्यतः इतनी ही समझनी चाहिए) विशेष यह है कि (इनकी) उत्कृष्ट: (शरीरावगाहना) एक हाथ की होती है। विवेचन-वैक्रियशरीरी जीवों की शरीरावगाहना-प्रस्तुत छह सूत्रों (सू. 1521 से 1526 तक) में वैक्रिशरीर के प्रमाणद्वार के प्रसंग में वैक्रियशरीरी जीवों के भवधारणीय और उत्तरवैक्रियशरीरों को लक्ष्य में रख कर उनकी जघन्य-उत्कृष्ट शरीरावगाहना की प्ररूपणा की गई है। विविध वैक्रियशरीरी जीवों की शरीरावगाहना को सुगमता से समझने के लिए तालिका दी जा रही हैक्रम वैक्रियशरीर के प्रकार भवधारणीया शरीरवगाहना ज. उ. उत्तरवैक्रिया शरीरावगा हना ज.उ. 1. प्रौधिक वैक्रिय शरीर जघन्य-अंगुल के असंख्यात भाग, उत्कृष्ट--कुछ अधिक एक लाख योजन 2. वायुकायिक ए. वै. जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातव शरीर भाग। भव. जघन्य--अंगुल के असंख्यातवं भाग, उ. संख्यातवें भाग शरीर 500 धनु. उ. 1000 योजन। 4. रत्नप्रभा के ना. के वै. भव. जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उ. ज. अंगुल के असंख्यातवें शरीर 7 ध. 3 हाथ 6 अं. भाग, 15 धनु. २।।हाथ / प. शर्कराप्रभा के ना. के ज. जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उ. ज. अगूल के संख्यातवें भाग वै. शरीर 15 ध. 2 / / हाथ उ. 31 धनु. 1 हाथ 3. बालकाप्रभा के ना. के ज. जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उ. ज. अंगुल के संख्यातवं भाग वै. शरीर 31. धनु. 1 हाथ भाग उ. 62 धनु. 2 हाथ 7. पंकप्रभा के ना. के वै. ज. अंगुल के असंख्यातवें भाग, उ. 62 धनु. __ ज. अंगुल के संख्यातवें भाग शरीर 2 हाथ उ. 125 धनुष 8. धमप्रभा के ना. के वै. ज. अंगुल के असंख्यातवें भाग, उ. 125 धनुष ज. अंगुल के संख्यातवें भाग शरीर उ. 250 धनुष है. तमःप्रभा के ना. के वै. ज. अंगुल के असंख्यातवें भाग, उ. 250 धनुष ज. अंगुल के संख्यातवें भाग शरीर उ. 500 धनुष 10. अधःसप्तम के ना. के ज. अंगुल के असंख्यातवें भाग, उ. 500 धनुष ज. अंगुल के संख्यातवें भाग वै शरीर उ. 1000 धनुष 11. तिर्यञ्च पं. के वैक्रिय जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग-प्रमाण उत्कृष्ट योजनशत-पृथक्त्व शरीर 12. मनुष्य पं. के वैक्रिय , , , , , , उ. कुछ अधिक एक लाख शरीर योजन की की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org