________________ 48] [प्रज्ञापनासूत्र [8] अहेसत्तमाए भवधारणिज्जा पंच धणुसताई, उत्तरवेउब्विया धणुसहस्सं / एवं उक्कोसेणं / [1526-8] अधःसप्तम (-पृथ्वी के नारकों) की भवधारणीया (अवगाहना) पांच-सौ धनुष की (और) उत्तरवैत्रिया (अवगाहना) एक हजार धनुष की है / यह (समस्त नरक पृथ्वियों के नारकों के भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय शरीर की) उत्कृष्ट (अवगाहना कही गई है। _ [9] जहण्णणं भवधारणिज्जा अगुलस्स असंखेज्जइभाग, उत्तरवेउब्विया अंगुलस्स संखेज्जइमागं / [1526-6] (इन सबकी) जघन्यत: भवधारणीया (अवगाहना) अंगुल के असंख्यातवें भाग . है (और) उत्तरवैक्रिया (अवगाहना) अंगुल के संख्यातवें भाग है / 1530. तिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाणा पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणसतपुहत्तं / [1530 प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है ? {उ.] गौतम ! जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग है (और) उत्कृष्टतः शतयोजन-पृथक्त्व की होती है। 1531. मणसपंचेंदियवेउब्वियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? गोयमा ! जहण्णणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसतसहस्सं / [1531 प्र.] भगवन् ! मनुष्य-पचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी है ? [उ. गौतम ! (वह) जघन्यत: अंगुल के संख्यातवें भाग (और) उत्कृष्टतः कुछ अधिक एक लाख योजन की है। 1532. [1] असुरकुमारभवणवासिदेवपं. दियवेउब्धियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? ___ गोयमा ! असुरकुमाराणं देवाणं दुविहा सरोरोगाहणा पण्णत्ता। तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य। तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ। तत्थ णं जा सा उत्तरवेउन्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणसतसहस्सं / [1532-1 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार-भवनवासी-देवपंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! असुरकुमारदेवों की दो प्रकार की शरीरावगाहना कही गई है / यथाभवधारणीया और उत्तरवैक्रिया। उनमें से भवधारणीया (शरीरावगाहना जघन्यत: अंगुल के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org