________________ इक्कीसवां अवगाहनासंस्थानपद] [447 तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जहभागं, उक्कोसेणं सत्त धणूई तिण्णि रयणीओ छच्च अंगुलाई / तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्विया सा जहणणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं पण्णरस धणूई अड्डाइज्जाओ रयणीओ। 1526-2 प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभा-पृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना कितनी कही [उ.] गौतम ! (वह अवगाहना) दो प्रकार की कही गई है, यथा-भवधारणीया और उत्तरवैक्रिया। उनमें से भवधारणीया शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग है, और उत्कृष्टतः सात धनुष, तीन रत्नि (मुंड हाथ) और छह अंगुल की है। उनकी उत्तरवैक्रिया अवगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्टत: पन्द्रह धनुष, ढाई रत्नि (मुंड हाथ) को है। [3] सक्करप्पभाए पुच्छा। गोयमा ! जाव तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहण्णणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं पण्णरस धणूई अड्डाइज्जाप्रो रयणीओ। तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्बिया सा जहण्णणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं एक्कतीसं धणूई एक्का य रयणी। [1526-3 प्र.] इसी प्रकार की पृच्छा शर्कराप्रभा के नारकों को शरीरावगाहना के विषय में करनी चाहिए। [उ.] गौतम ! यावत् (दो प्रकार की अवगाहना कही है, उनमें से) भवधारणोया (अवगाहना) जघन्यत: अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्टतः पन्द्रह धनुष, ढाई रत्नि की है। (तथा) उत्तर वैक्रिया (अवगाहना) जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग है, (और) उत्कृष्टतः इकतीस धनुष एक रत्लि की है। [4] वालुयप्पभाए भवधारणिज्जा एक्कतोसं धणूई एक्का य रयणी, उतरवेउ विया बावट्टि धणूइं दोण्णि य रयणीयो। [1529-4 प्र.] बालुकाप्रभा (पृथ्वी के नारकों) को भवधारणीया (अवगाहना) इकतोस धनुष एक रत्नि की है, (और) उत्तरवैक्रिया (अवगाहना) बासठ धनुष दो हाथ, की है। [5] पंकप्पभाए भवधारणिज्जा बावट्टि धणूई दोणि य रयणोओ, उत्तरवेउब्विया पणुवीस धणुसतं। [1526-5] पंकप्रभा (-पृथ्वी के नारकों) को भवधारणोया (अवगाहना) बासठ धनुष दो हाथ की है, (और) उत्तरक्रिया (अवगाहना) एक सौ पच्चीस धनुष को है। [6] धूमप्पभाए भवधारणिज्जा पणुवीसं धणुसतं, उत्तरवेउन्विया अड्डाइज्जाई धणुसताई। [1526-6] धूमप्रभा (-पृथ्वी के नारकों) की भवधारणीया (अवगाहना) एक-सौ पच्चीस धनुष की है (और) उत्तरवैक्रिया (अवगाहना) अढ़ाई-सौ धनुष की है। [7] तमाए भवधारणिज्जा अड्डाइज्जाई धणुसताई, उत्तरवेउव्यिया पंच धणुसताई। [1526-7] तमः (प्रभापृथ्वी के नारकों) की भवधारणोया (अवगाहना) अढाई सौ धनुष की है, (और) उत्तरवैक्रिया (अवगाहना) पांच सौ धनुष की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org