Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ इक्कीसवाँ अवगाहनासंस्थानपद] [443 वैक्रियशरीर में संस्थान-द्वार 1521. वेउव्वियसरीरे णं भंते ! किसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! जाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते / / [1521 प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) नाना संस्थान वाला कहा गया है। 1522. वाउक्काइयएगिदियवेउब्वियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! पडागासंठाणसंठिए पण्णत्ते / [1522 प्र.] भगवन् ! वायुकायिक-एकेन्द्रियों का वैक्रियशरीर किस प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) पताका के आकार का कहा गया है। 1523. [1] रइयपंचेंदियवेउब्वियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा! रइयपंचेंदियवेउव्वियरीरे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-भवधारणिज्जे य उत्तरवेउव्यिए य / तत्थ णं जे से भवधारणिज्जे से हंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते / तत्थ णं जे से उत्तरबेउब्विए से वि हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते / [1523-1 प्र.] भगवन् ! नैरयिक-पंचेन्द्रियों का वैक्रियशरीर किस संस्थान का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! नैरयिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रिय शरीर दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार--भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय / उनमें से जो भवधारणीय वैक्रिय शरीर है, उसका संस्थान हुंडक है, तथा जो उत्तरवैक्रियसंस्थान है, वह भी हुंडक संस्थान वाला होता है। [2] रयणप्पभापुढविणेरइयपंचेंदियवेउवियरीरे णं भंते ! किसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! रयणप्पभापुढविणेरइयाणं दुविहे सरीरे पण्णत्ते / तं जहा-भवधारणिज्जे य उत्तरवेउविए य। तत्थ णं जे से भवधारणिज्जे से वि हुंडे, जे वि उत्तरवेउविवए से वि हुंडे / एवं जाव अहेसत्तमापुढविणेरइयवेउव्वियसरीरे। [1523-2 प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभा-पृथ्वी के नारक-पंचेन्द्रियों का वैक्रिय शरीर किस संस्थान का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिकपंचेन्द्रियों का (वैक्रिय) शरीर दो प्रकार का कहा गया है-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय / उनमें से जो भवधारणीय वैक्रिय शरीर है, वह हुंडक संस्थान वाला है और उत्तरवैक्रिय भी हुंडक संस्थान वाला होता है। इसी प्रकार (शर्कराप्रभा पृथ्वी से लेकर) यावत् अधःसप्तम पृथ्वी के नारकों (तक के ये दोनों प्रकार के वैक्रियशरीर हुंडक संस्थान वाले होते हैं / ) रिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरेणं भंते ! किसंठाणसंठिए पण्णत्ते? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org