________________ इक्कीसवाँ अवगाहनासंस्थानपद] [439 [उ.] गौतम ! पर्याप्तक-जलचर-संख्यात-वर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रियों के क्रिय शरोर होता है, (किन्तु) अपर्याप्तक-जलचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर नहीं होता। [6] जदि थलयरसंखेज्जवासाउयगम्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदिय जाव सरीरे कि चउप्पय जाव सरीरे परिसप्प जाव सरीरे ? गोयमा ! चउप्पय जाव सरीरे वि परिसप्प जाव सरीरे वि / 1518.6 प्र.] (भगवन् !) यदि स्थलचर-संख्यात-वर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है ? तो क्या पर्याप्तकस्थलचर या अपर्याप्तकस्थलचर... तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों के. होता है ? अथवा चतष्पदस्थलचर..... तिर्यञ्चपचेन्द्रियों के होता है या फिर उर.. परिसर्प पर्याप्तक अथवा भुजपरिसर्प-पर्याप्तकस्थलचर....... / यावत् तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है ? उ.। गौतम ! (पर्याप्तक) चतुष्पद-(स्थलचर"...."तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों) के भी (वैक्रिय)शरीर (होता है, यावत् परिसर्प(उरःपरिसर्प एवं भुजपरिसर्प ....."तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों) के भी (बैंक्रिय) शरीर (होता है / ) [7] एवं सन्वेसि णेयं जाव खहयराणं पज्जताणं, जो अपज्जत्ताणं / {1518/7] इसी प्रकार खेचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यवयोनिक-पंचेन्द्रियों के भी वैक्रियशरीर जान लेना चाहिए, (विशेष यह है कि) खेचर पर्याप्तकों के (वैक्रियशरीर होता है,) अपर्याप्तकों के नहीं। 1519. [1] जदि मणूसपंचेंदिययेउब्वियसरीरे कि सम्मुच्छिममणूसपंचेंदियवेउब्धियसरीरे गब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे? गोयमा ! णो सम्मुच्छिममणूसपंचेंदियवेउब्वियसरोरे, गमवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे। [1516/1 प्र.] (भगवन् ! ) यदि मनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, तो क्या सम्मूच्छिममनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, अथवा गर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है ? [उ.] गौतम ! सम्मूच्छिम-मनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरोर नहीं होता, (किन्तु) गर्भजमनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है / _[2] जदि गम्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउब्वियसरीरे कि कम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसपंचेदियवेउव्वियसरीरे अकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमभूसपंचेंदियवेउब्वियसरीरे अंतरदीवयगम्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? ___ गोयमा ! कम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउब्वियसरीरे, णो अकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउब्वियसरोरे नो अंतरदोक्यगन्भवतियमणूसपंचेंदियवेउब्वियसरीरे य / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org