________________ कोसवां अवगाहनासंस्थानपद] [431 1508. एवं तेइंदियाणं तिष्णि गाउयाई / चरि दियाणं चत्तारि गाउयाई। [1508 | इसी प्रकार (औधिक और पर्याप्तक) त्रीन्द्रियों (के औदारिक शरीर) की (उत्कृष्ट अवगाहना) तीन गव्यूति (गाऊ) की है तथा (औधिक और पर्याप्तक) चतुरिन्द्रियों (के औदारिक शरीर) की (उत्कृष्ट अवगाहना) चार गव्यूति (गाउ) की है। 1509. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं जोयणसहस्सं 3, एवं सम्मुच्छिमाणं 3, गम्भवक्कंतियाण वि 3 / एवं चेव णवओ भेदो भाणियन्वो। 1506 | पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के (1) प्रौधिक औदारिक शरीर की, उनके (2) पर्याप्तों के मौदारिक शरीर की तथा उनके (3) अपर्याप्नों के औदारिक शरीर) की उत्कृष्ट अ योजन की है / ) तथा सम्मूच्छिम (पंचेन्द्रिय -तिर्यञ्चों के प्रौघिक और पर्याप्तक) औदारिक शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना इसी प्रकार (एक हजार योजन) की (समझनी चाहिए किन्तु सम्मूच्छिम अपर्याप्तक तिर्यञ्च पचेन्द्रिय के औदारिक शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की होती है।) गर्भज पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों तथा उनके पर्याप्तकों के औदारिक शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना भी इसी प्रकार समझनी चाहिए, किन्तु इनके अपर्याप्तकों की पूर्ववत् अवगाहना होती है। इस प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों की औदारिक शरीरावगाहना सम्बन्धी कुल : भेद (पालापक) होते हैं। 1510. एवं जलयराण वि जोयणसहस्सं, णवओ भेदो। [1510] इसी प्रकार प्रौघिक और पर्याप्तक जलचरों के औदारिक शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की (पं. ति. की औ. शरीरावगाहना के समान) होती है / (अपर्याप्त जलचरों की औ. शरीरावगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पूर्ववत् जाननी चाहिए / ) इसी प्रकार पूर्ववत् इसकी औदारिक शरीरावगाहना के 6 भेद (विकल्प) होते हैं। 1511. [1] थलयराण वि णवओ भेदो उक्कोसेणं छग्गाउयाई, पज्जत्ताण दि एवं चेव 3 / सम्मच्छिमाणं पज्जत्ताण य उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं / गब्भवतियाणं उक्कोसेणं छग्गाउयाई पज्जत्ताण य 2 / ओहियचउप्पयपज्जत्तय-गम्भवक्कंतियपज्जत्तयाण य उक्कोसेणं छग्गाउयाई। सम्मुच्छिमाणं पज्जत्ताण य गाउयपुहत्तं उक्कोसेणं। |1511-1] स्थलचर पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों को औदारिक शरीरावगाहना-सम्बन्धी पूर्ववत् / विकल्प होते हैं / (समुच्चय) स्थलचर पं. ति. की प्रौदारिक शरीरावगाहना उत्कृष्टत: छह मव्युति की होती है / सम्मूच्छिम स्थलचर प. तिर्यञ्चों के एवं उनके पर्याप्तकों के औदारिक शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना गन्यूति-पृथक्त्व (दो गाऊ से नौ गाऊ तक) की होती है। उनके अपर्याप्तों की जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की होती है / गर्भज तिर्यञ्च पंचेन्द्रियों के औदारिक शरीर की अवगाहना उत्कृष्ट छह गव्यूति की और (उनके) पर्याप्तकों (के प्रौदारिक शरीर) की (उत्कृष्ट अवगाहना) भी (इतनी ही होती है / ) औधिक चतुष्पदों के, इनके पर्याप्तकों के तथा गर्भजचतुष्पदों के तथा इनके पर्याप्तकों के औदारिक शरीर की अवगाहना उत्कृष्टतः छह गव्यूति की होती है / (इनके अपर्याप्तकों की अवगाहना पूर्ववत् होती है / ) सम्मूच्छिम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org