________________ 432] [प्रज्ञापनासूत्र चतुष्पद (स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों) के तथा (उनके) पर्याप्तकों (के औदारिक शरीर) को (अवगाहना) उत्कृष्ट रूप से गव्यूतिपृथक्त्व की (होती है / ) [2] एवं उरपरिसप्पाण वि ओहिय-गजभवक्कतियपज्जत्तयाणं जोयणसहस्सं / सम्मुच्छिमाणं जोयणपुहत्तं / [1511-2] इसी प्रकार उर:परिसर्प (-स्थलचरपंचेन्द्रिय-तिर्यचों के औधिक, गर्भज तथा (उनके) पर्याप्तकों (के औदारिक शरीर) की (उत्कृष्ट अवगाहना) एक हजार योजन की होती है / सम्मच्छिम (उर:परिसर्प स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के तथा) उनके पर्याप्तकों (के औदारिक शरीर) की (उत्कृष्ट अवगाहना) योजनपृथक्त्व की (होती है।) इनके अपर्याप्तकों की पूर्ववत् होती है।) [3] भुय परिसप्पाणं ओहियगम्भवक्कंतियाण य उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं / सम्मुच्छिमाणं धणुपुहत्तं / [1511-3 | भुजपरिसर्प स्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के प्रौघिक, गर्भज तथा उनके पर्याप्तकों के औदारिक शरीर को अवगाहना उत्कृष्टतः गव्यूति-पृथक्त्व की होती है। सम्मूच्छिम (-भुजपरिसर्प स्थलचर-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के तथा उनके पर्याप्तकों के औदारिक शरीर) की उत्कृष्ट अवगाहना धनष-पृथक्त्व की होती है। (इनके अपर्याप्तकों के औदारिक शरीर की अवगाहना पूर्ववत् समझे।) 1512. खहयराणं ओहिय-गम्भवतियाणं सम्मुच्छिमाण य तिष्ह वि उक्कोसेणं धणुपुहत्तं / इमाओ संगहणिगाहानो--- जोयणसहस्स छग्गाउयाई तत्तो य जोयणसहस्सं / ' गाउयपुहत्त भुयए धणूपुहत्तं च पक्खीसु // 21 // जोयणसहस्स गाउयपुहत्त तत्तो य जोयणपुहत्तं / दोण्हं तु धणुपुहत्तं सम्मुच्छिमे होति उच्चत्त // 216 / / [1512] खेचर (-पंचेन्द्रिय-तियंञ्चों के प्रौधिकों गर्भजों एवं सम्मूच्छिमों, इन तीनों के औदारिक शरीरों की उत्कृष्ट अवगाहना धनुषपृथक्त्व की होती है। [गाथार्थ ] - (गर्भज जलचरों को उत्कृष्ट अवगाहना) एक हजार योजन की, चतुष्पदस्थलचरों की उत्कृष्ट अवगाहना) छह गब्यूति की, तत्पश्चात् (उर:परिसर्प (स्थलचरों की (अवगाहना) एक हजार योजन की (होती है / ) भुजपरिसप (स्थलचरों) की गव्यूतिपृथक्त्व की और खेचर पक्षियों की धनुष-पृथक्त्व की (औदारिकशरोरावगाहना होती है / / 215 / / सम्मूच्छिम (स्थलचरों) की (प्रौदारिकशरीरावगाहना उत्कृष्टतः) एक हजार योजन की, चतुष्पद स्थल चरों की अवगाहना गव्यूति-पृथक्त्व की उर :परिसों की योजनपृथक्त्व की, भुजपरिसो की तथा (यौधिक और पर्याप्तक) इन दोनों एवं सम्मूच्छिम खेचरपक्षियों की धनुषपृथक्त्व की उत्कृष्ट प्रौदारिक शरीरावगाहना (ऊँचाई) समझनी चाहिए / / 216 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org