Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ इक्कीसवाँ अवगाहनासंस्थानपद] 1513. [1] मणस्सोरालियसरीरस्स गं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं तिष्णि गाउयाइं। [१५१३-१प्र. भगवन् ! मनुष्यों के प्रौदारिक शरीर की अवगाहना कितनी कही गई है ? [उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट तीन गव्यूति की होती है। [2] अपज्जत्ताणं जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं / [1513-2] अपर्याप्तक (मनुष्यों के औदारिक शरीर) की (अवगाहना) जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यात भाग की (होती है / ) [3] सम्मुच्छिमाणं जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं / [१५१३-३]सम्मूच्छिम (मनुष्यों के औदारिक शरीर) की जघन्यतः और उत्कृष्टत: (अवगाहना) अंगुल के असंख्यातवें भाग की (होती है।) [4] गम्भवक्कंतियाणं पज्जत्ताण य जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। [1513-4] गर्भज मनुष्यों के तथा इनके पर्याप्तकों के औदारिक शरीर की अवगाहना जघन्यत: अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्टतः तीन गव्यूति की होती है। विवेचन–सर्वविध औदारिक शरीरों की अवगाहना-सम्बन्धी प्ररूपणा-प्रस्तुत 12 सूत्रों (सू. 1502 से 1513 तक) में एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय-मनुष्यों तक के सभी प्रकार के औदारिक शरीरों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना की प्ररूपणा की गई है / इसे सुगमता से समझने के लिए तालिका दी जा रही हैक्रम प्रौदारिकशरीरधारी जीवों के नाम जघन्य अवगाहना उत्कृष्ट अवगाहना 1. समुच्चय औदारिक शरीर की अंगुल का कुछ अधिक एक हजार योजन असंख्यातवाँ भाग 2. एकेन्द्रिय के औदारिक शरीर की 3. पृथ्वीकायिकों, पर्याप्तक-अपर्याप्तकों के औदारिक शरीर की अंगुल का असंख्यातवां भाग पृथ्वी कायिकों के सूक्ष्म, बादर के औदारिक शरीर की 4. अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिकों के औदारिक शरीर की 5. वनस्पतिकायिकों के औदारिक शरीर की कुछ अधिक हजार योजन वनस्पति अपर्याप्तकों के प्रौदारिक शरीर अंगुल का असंख्यातवाँ भाग वनस्पति पर्याप्तकों के औदारिक शरीर की कुछ अधिक हजार योजन 1. पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा-१ पृ. 333 से 335 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org