________________ इक्कीसवाँ अवगाहनासंस्थानपद] [435 मनुष्यों के गर्भजों तथा पर्याप्तकों के औदारिक शरीर की , तीन गव्यूति' समुच्चय औदारिक शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना--कुछ अधिक हजार योजन की कही गई है, वह समुद्र गोतीर्थ आदि में पद्मनाल आदि की अपेक्षा से समझना चाहिए / यहाँ के सिवाय अन्यत्र इतनी अवगाहना वाला प्रौदारिक शरीर सम्भव नहीं है / नौ-नौ सूत्रों का समूह-- पृथ्वोकायिकादि एकेन्द्रियों के प्रत्येक के नौ-नौ सूत्र इस प्रकार हैं(१-३) औधिक सूत्र, औधिक अपर्याप्तसूत्र, प्रौधिक पर्याप्तसूत्र; (4-6) सूक्ष्मसूत्र, सूक्ष्मअपर्याप्तक सूत्र और सूक्ष्म पर्याप्तक सूत्र; तथा (7-6) बादर सूत्र, वादर-अपर्याप्तकसूत्र और वादर पर्याप्तकसूत्र; ये तीनों के त्रिक मिला कर पृथ्वीकायिक से लेकर वनस्पतिकायिकों के प्रकार के 8-6 सूत्र हुए। इसी तरह द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रयों के प्रत्येक के औधिक सूत्र, पर्याप्तसूत्र, और अपर्याप्त सूत्र; यों तीन-तीन सूत्र होते हैं / जलचरों से औधिक, उसका पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये तीन सूत्र, गर्भज, उसके पर्याप्तक और पर्याप्तक ये तीन सूत्र, इस प्रकार तीनों त्रिक मिला कर जलचरों के 6 सूत्र होते हैं। इसी प्रकार स्थलचर, चतुष्पद, उरःपरिसर्प, भुजपरिसर्प, खेचरपंचेन्द्रिय तियंञ्चों के प्रत्येक के औधिकत्रिक, गर्भजत्रिक एवं सम्मच्छिमत्रिक के हिसाब से 6-6 सूत्र होते हैं। मनुष्यों के औदारिक शरीर को उत्कृष्ट अवगाहना–तीन गव्यूति (6 कोस) की कही गई हैं, वह देवकुरु अादि के मनुष्यों की अपेक्षा से इतनी उत्कृष्ट अवगाहना समझनी चाहिए। वैक्रिय शरीर में विधिद्वार 1514. वेउव्वियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-एगिदियवेउब्वियसरीरे य पंचेंदियवेउब्वियसरीरे य / [1514 प्र] भगवन् ! वैक्रिय शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार एकेन्द्रिय वैक्रियशरीर और पंचेन्द्रिय वैक्रियशरीर / 1515. [1] जदि एगिदियवेउव्वियसरीरे कि वाउक्काइयएगिदियवेउब्वियसरीरे अवाउक्काइयएगिदियवेउब्वियसरीरे ? गोयमा ! वाउक्काइयएगिदियवेउब्वियसरीरे, णो अवाउक्काइयएगिदियवेउब्वियसरीरे / [1515-1 प्र.] (भगवन् ! ) यदि एकेन्द्रिय जीवों के वैक्रिय शरीर होता है, तो क्या वायुकायिक-एकेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है या अवायुकायिक-एकेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है ? [उ.] गौतम ! वायुकायिक एकेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, अवायुकायिक-एकेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर नहीं होता। _[2] जवि वाउपकाइयएगिदियवेउब्धियसरीरे किं सुहुमवाउक्काइयएगिदियवेउब्वियसरीरे बादरबाउक्काइयगिदियवेउब्बियसरीरे ? 1. पण्णवणाशेतं (मूलपाठ-टिप्पण) भाग-१ पृ. 333 से 335 तक 2. प्रज्ञापना., मलयवृति, पत्र 413 3. प्रज्ञापना., मलयवृत्ति, पत्र 413-814 4. वही, मलयवृत्ति, पत्र 414 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org