________________ [प्रज्ञापनासूत्र कुछ अधिक हजार योजन अंगुल का असंख्यातवाँ भाग बारह योजन अंगुल का असंख्यातवाँ भाग तीन गव्युति (6 कोस) चार गव्यूति (8 कोस) एक हजार योजन अपर्याप्त का अंगुल का अ. भाग एक हजार योजन, अप. की अं.अ.भा. छह गव्यूति वनस्पति वादर, पर्याप्तकों के पौ. श. की वनस्पति बादर अपर्याप्तकों के प्रो. श. को वनस्पति सूक्ष्म, पर्याप्तक, अपर्याप्तकों के यौदारिक शरीर को 6. द्वीन्द्रियों के औदारिक शरीर की द्वीन्द्रियों के पर्याप्तकों के औ. शरीर की द्वीन्द्रियों के अपर्याप्तकों के प्रो. शरीर की 7. त्रीन्द्रियों के अपर्याप्तकों के प्रो. शरीर की वीन्द्रियों के यौधिक एवं पर्याप्तकों के प्रो. शरीर की 8. चतुरिन्द्रियों के प्रौघिक एवं पर्याप्तकों के औदारिक शरीर की 6. पचेन्द्रियतियंञ्चों के प्रौदारिक शरीर की 3. प्रौधिक पर्याप्त अपर्याप्त के औ. श. की 3. सम्मूच्छि पर्याप्त अपर्याप्त के प्रो.श. की 3. गर्भज पर्याप्त अपर्याप्त के औ. श. की 10. जलचर प. ति. के औदारिक शरीर की जलचर 3. औधिक पर्याप्तक अपर्याप्तक के औदारिक शरीर की। जलचर 3, सम्मूच्छिम पर्याप्तक अपर्याप्तक के औदारिक शरीर की जलचर 3. गर्भज पर्याप्तक अपर्याप्तक के औदारिक शरीर को 11. स्थलचर प. ति. के प्रोधिक के ग्रौ. श. की स्थलचर चतुष्पद प.ति. के, पर्याप्तक, गर्भज, पर्याप्तक के औदारिक शरीर की / स्थलचर चतुष्पद सम्मूच्छिम प. ति. के, पर्याप्त के प्रौदारिक शरीर की स्थलचर उरःपरिसर्प प. ति. के औधिक, गर्भज, पर्याप्तक के औदारिक शरीर की भुजपरिसर्प प. ति. के औधिक, गर्भज, सम्मूच्छिम के औदारिक शरीर की 12. खेचर प. ति. के औधिक, गर्भज, सम्मूच्छिम के औदारिक शरीर की 13. मनुष्यों के प्रोधिक, पर्याप्तक के औ. श. की मनुष्यों के अपर्याप्तकों व सम्मूच्छिमों के औदारिक शरीर की छह गव्यूति अपर्याप्तक की पूर्ववत् गव्यूति पृथक्त्व, अपर्याप्तक की पूर्ववत् छह गव्युति गव्यूति पृथक्त्व योजन पृथक्त्व धनुष्य पृथक्त्व , तीन गन्यूति अंगुल का असंख्यातवाँ भाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org