Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ इक्कीसवाँ अवगाहनसंस्थानपद] [429 1503. एगिदियोरालियस्स वि एवं चेव जहा ओहियस्स (सु. 1502) / [1503] एकेन्द्रिय के प्रौदारिक शरीर की अवगाहना भी जैसे (सू. 1502 में) प्रौधिक (सामान्य औदारिक शरीर) की (कही है उसी प्रकार समझनी चाहिए।) 1504. [1] पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभार्ग। [1504-1 प्र. भगवन् ! पृथ्वी कायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक शरीर की अवगाहना कितनी [उ.] गौतम ! (उसकी अवगाहना) जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की है। [2] एवं अपज्जत्तयाण वि पज्जत्तयाण वि / [1504-2] इसी प्रकार अपर्याप्तक एवं पर्याप्तक (-पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीरों) की भी (अवगाहना इतनी ही समझनी चाहिए।) [3] एवं सुहमाण वि पज्जत्तापज्जत्ताणं / [1504-3] इसी प्रकार सूक्ष्म पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक (-पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीरों) की (अवगाहना) भी समझनी चाहिए। [4] बादराणं पज्जत्तापज्जत्ताण वि एवं / एसो णवओ भेदो। [1504-4] बादर पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक (पृ. ए. औदारिक शरीरों) की (अवगाहना की वक्तव्यता) भी इसी प्रकार (समझनी चाहिए।) (इस प्रकार पृथ्वीकायिकों के शरीगवगाहनासम्बन्धी) ये नौ भेद (आलापक) हुए। 1505. जहा पुढविक्काइयाणं तहा आउक्काइयाण वि तेउकाइयाण वि वाउबकाइयाण वि। [1505] जिस प्रकार पृथ्वीकायिकों के (औदारिक शरीरावगाहना-सम्बन्धी 6 पालापक--- भेद हुए,) उसी प्रकार प्रकायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवों के भी (ग्रौदारिक शरीरावगाहना-सम्बन्धी 6 ग्रालापक कहने चाहिए / ) 1506. [1] वणस्सइकाइयओरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा ! जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं / [1506-1 प्र. भगवन् ! वनस्पतिकायिकों के प्रौदारिक शरीर की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! (उसकी अवगाहना) जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार योजन की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org