________________ इक्कीसवां अवगाहनसंस्मानपर] [ 427 की प्ररूपणा की गई है / संस्थानों की प्ररूपणा का क्रम औदारिक शरीर के भेदों के क्रम के अनुसार रखा गया है।' औदारिक शरीरों को संस्थान-सम्बन्धी तालिका-इस प्रकार है क्रम प्रौदारिक शरीर का प्रकार संस्थान 1. पृथ्वीकायिक सूक्ष्म-बादर, पर्याप्त-अपर्याप्त औदारिक शरीर मसूर की दाल के समान 2. अप्कायिक सूक्ष्म-बादर पर्याप्त-अपर्याप्त औदारिक शरीर स्थिर जलविन्दु के समान 3. तेजस्कायिक सूक्ष्म-बादर पर्याप्त-अपर्याप्त औदारिक शरीर सइयों के ढेर के समान 4. वायकायिक सक्षम-बादर, पर्याप्त-अपर्याप्त प्रौदारिक शरीर पताका के प्राकार के समान 5. बनस्पतिकायिक सुक्ष्म-बादर, पर्याप्त-अपर्याप्त औदारिक शरीर नाना प्रकार के संस्थान वाला 6. द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्तक औदारिक शरीर हुंडक संस्थान वाले 7. तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय औदारिक शरीर छही प्रकार के संस्थान वाला 8. सम्मूच्छिम ति. पं. औदारिक शरीर पर्याप्त-अपर्याप्त हंडक संस्थान वाला 6. गर्भज ति. पं. औदारिक शरीर पर्याप्त-अपर्याप्त षविध संस्थान वाला 10. जलचर ति. पं. औदारिक शरीर पर्याप्त-अपर्याप्त, गर्भज षडविध संस्थान वाला 11. सम्मूच्छिम जलचर ति. पं. औदारिक शरीर पर्याप्त-अपर्याप्त हुंडक संस्थान सम्मूच्छिम स्थलचर, खेचर ति. पं. औदारिक शरीर पर्याप्त-अपर्याप्त हुंडक संस्थान 12. स्थलचर चतुष्पद, उर:परिसर्प, भुजपरिसर्प, पर्याप्त-अपर्याप्त छहों प्रकार के संस्थान 13. खेचर ति. पं. पर्याप्त-अपर्याप्त प्रौदारिक शरीर छहों प्रकार के संस्थान 14. मनुष्य पंचेन्द्रिय, गर्भज, पर्याप्त-अपर्याप्त औदारिक शरीर छहों प्रकार के संस्थान 15. सम्मूच्छिम मनुष्य पं. प्रौदारिक शरीर, पर्याप्त-अपर्याप्त हुंडक संस्थान मसूरचंद आदि शब्दों के विशेषार्थ-मसूरचंद संठाण-मसूर एक प्रकार का धान्य होता है, जिसकी दाल बनती है / मसूर का चन्द्र अर्थात् चन्द्राकार अर्धदल (दाल) मसूरचन्द्र ; उसके समान आकार / थिबुगबिन्दु-संठाण--स्तिबुकबिन्दु-पानी के बुदबुद जैसा होता है, जो बूंद वायु आदि के द्वारा इधर-उधर बिखरे या फैले नहीं, जमा हुआ तो, वह स्तिबुकबिन्दु कहलाता है, उसके जैसा आकार / नाना संठाणसंठिया-देश, जाति और काल प्रादि के भेद से उनके आकार में भिन्नता होने से विविध प्रकार के आकार वाले।३।। संस्थान : प्रकार और स्वरूप-शरीर की आकृति या रचना-विशेष को संस्थान कहते हैं। उसके 6 प्रकार हैं--(१) समचतुरस्र, (2) न्यग्रोध-परिमण्डल, (3) सादि (स्वाति), (4) वामन, (5) कुब्जक और (6) हुण्डकसंस्थान / छहों का स्वरूप इस प्रकार है-(१) समचतुरस्त्र---जिस शरीर के चारों ओर के चारों प्रस्रकोण या विभाग सामुद्रिक शास्त्र में कथित लक्षणों के अनुसार सम 1. पण्णवणामुत्तं, (प्रस्तवना परिशिष्टादि) भा. 2, पृ. 117 2. पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ,-टिप्पणयुक्त) भा. 1, पृ. 331 से 333 तक 3. प्रज्ञापना. मलयवृति, पत्र '411 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org