________________ इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान-पद] [425 [3] गमवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किसंठाणसंठिए पणते? गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते। तं जहा-समचउरंसे जाव हुंडसंठाणसंठिए। एवं पज्जतापज्जत्ताण वि३ / एवमेते तिरिक्खजोणियाणं ओहियाणं णव आलावगा। [1467-3 प्र.] भगवन् ! गर्भज तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है. अर्थान् समचतुरस्रसंस्थान से लेकर यावत् हुडकसंस्थान वाला भी है। इसी प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक (गर्भज तिर्यञ्चपचंन्द्रिय प्रौदारिक शरीरों के भी (ये छह संस्थान समझने चाहिए।) __इस प्रकार औधिक (सामान्य) तिर्यञ्चयोनिकों (तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय-प्रौदारिक शरीरों के संस्थानों) के ये (पूर्वोक्त) नौ पालापक समझने चाहिए। 1498. [1] जलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किसंठाणसंठिए पणत्ते ? गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते / तं जहा-समचउरसे जाव हुंडे / [1468-1 प्र.] भगवन् ! जलचर तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर किस संस्थान वाला कहा गया है? [उ.] गौतम ! (वह) छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है। जैसे कि---समचतुरस्र (मे लेकर) यावत् हुण्डक संस्थान वाला / [2] एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि / [1468-2] इसी प्रकार पर्याप्त, अपर्याप्तक (जलचर तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रिय प्रौदारिक शरीरों) के भी संस्थान (छहों प्रकार के समझने चाहिए / ) [3] सम्मुच्छिमजलयरा हुंडसंठाणसंठिया / एतेसि चेव पज्जत्तापज्जत्तगा वि एवं चेव / [1498-3] सम्मूच्छिम जलचरों (तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय) के औदारिक शरीर हुण्डकसंस्थान वाले हैं / उनके पर्याप्तक, अपर्याप्तकों के (औदारिक शरीर) भी इसी प्रकार (हुण्डकसंस्थान) के (होते हैं।) [4] गम्भवक्कंतियजलयरा छविहसंठाणसंठिया / एवं पज्जत्तापज्जत्तगा वि / [1498-4] गर्भज जलचर (तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों के औदारिक शरीर) छहों प्रकार के संस्थान वाले हैं। इसी प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक (गर्भज जलचर-तिर्यञ्च पंचेन्द्रियों के औदारिक शरीर) भी (छहों संस्थान वाले समझने चाहिए।) 1499. [1] एवं थलयराण वि णव सुत्ताणि / [1466-1] इसी प्रकार स्थलचर (तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय-प्रौदारिक शरीर-संस्थानों) के नौ सूत्र (भी पूर्वोक्त प्रकार से समझ लेने चाहिए।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org