________________ 424] [प्रज्ञापनासूत्र [2] एवं सुहुम-बायर-पज्जत्तापज्जत्ताण वि। [1464-2] (वनस्पतिकायों के) सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्त (शरीरों) का (संस्थान) भी (नाना प्रकार का है।) 1495. [1] बेइंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते / [1465-1 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय औदारिक शरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है [उ.] गौतम ! (वह) हुंडक संस्थान वाला कहा गया है / [2] एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि। [1465-2] इसी प्रकार पर्याप्तक और अपर्याप्तक (द्वीन्द्रिय प्रौदारिक शरीरो का संस्थान भी हुंडक कहा गया है।) 1496. एवं तेइंदिय-चरिदियाण वि / [1496] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय (के पर्याप्तक, अपर्याप्तक शरीरों) का संस्थान भी (हुण्डक समझना चाहिए / ) 1497. [1] तिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किसंठाणसंठिए पण्णते? गोयमा ! छविहसंठाणसंठिए पण्णत्ते / तं जहा-समचउरंससंठाणसंठिए जाव' हुंडसंठाणसंठिए वि / एवं पज्जत्ताऽपज्जत्ताण वि३। [1467-1 प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ? उ.] गौतम ! (वह) छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है। यथा-समचतुरस्रसंस्थान से लेकर हुडक संस्थान का भी है। इसी प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक (तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय प्रौदारिक शरीर के संस्थान) के विषय में भी (समझ लेना चाहिए।) [2] सम्मुच्छिमतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते / एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि 3 / [1467-2 प्र. भगवन् ! सम्मूच्छिम तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) हुँडक संस्थान बाला कहा गया है / इसी प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक (सम्मूच्छिम तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय प्रौदारिक शरीर) का (संस्थान) भी (हण्डक ही समझना चाहिए / ) 1. 'जाब' शब्द 'नम्गोहपरिमंडलर्सठाणसंठिए, साइसं०, वामणसं०, खुज्जसठाणसंठिए, हंडसंठाणसंठिए, शब्दों का सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org