________________ इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान-पद [423 1460-3] वादर पृथ्वीकायिकों का (प्रौदारिक शरीर-संस्थान) भी इसी के समान (समझना चाहिए। [4] पज्जत्तापज्जत्ताण वि एवं चेव / / 1460-4] पर्याप्तक और अपर्याप्तक (पृथ्वीकायिकों का औदारिक शरीर-संस्थान भी इसी प्रकार का (जानना चाहिए।) 1491. [1] आउक्काइयएंगिदियोरालियसरीरे णं भंते ! किसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! थिबुर्गाबदुसंठाणसंठिए पण्णत्ते। {1461-1 प्र.] भगवन् ! अप्कायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक शरीर का संस्थान कैसा कहा गया है [उ. | गौतम ! (अकायिकों के शरीर का संस्थान) स्तिबुकबिन्दु (स्थिर जलबिन्दु) जैसा कहा गया है। [2] एवं सुहम-बायर-पज्जत्तापज्जत्ताण वि / [1491-2J इसी प्रकार का संस्थान अप्कायिकों के सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तक शरीर का समझना चाहिए। 1492. [1] तेउक्काइयएगिदियओरालियसरीरे गं भंते ! लिसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! सूईकलावसंठाणसंठिए पण्णत्ते / [1462-1 प्र.] भगवन् ! तेजस्कायिक एकेन्द्रिय औदारिक शरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है। उ.] गौतम ! तेजस्कायिकों के शरीर का संस्थान सूइयों के ढेर (सूचीकलाप) के जैसा कहा गया है। [2] एवं सुहुम-बादर-पज्जत्तापज्जत्ताण वि। [1462-2] इसी प्रकार (का संस्थान तेजस्कायिकों के) सूक्ष्म, बादर पर्याप्त और अपर्याप्त (शरीरों) का (समझना चाहिए / ) 1493. [1] बाउक्काइयाणं पड़ागासंठाणसंठिए पण्णत्ते / [1493-1] वायुकायिक जीवों (के औदारिक शरीर) का संस्थान पताका के समान है / [2] एवं सुहुम-बायर-पज्जत्तापज्जत्ताण वि। 1463-2] इसी प्रकार का संस्थान (वायुकायिकों के) सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्तक (शरीरों का) भी समझना चाहिए / 1494. [1] वणप्फइकाइयाणं णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते / {1494-1] वनस्पतिकायिकों के शरीर का संस्थान नाना प्रकार का कहा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org