________________ 422] [प्रज्ञापनासूत्र : के पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से 6 भेद हुए। तत्पश्चात् औदारिक शरीरी पंचेन्द्रिय के मुख्य दो भेद--तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय और मनुष्यपंचेन्द्रिय / तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय प्रौढारिक शरीर के मुख्य तीन भेदजलचर, स्थलचर और खेचर सम्बन्धी / फिर जलचर शरीर के दो भेद-सम्भूच्छिम एवं गर्भज / सम्मूच्छिम और गर्भज दोनों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक, ये दो-दो भेद / स्थल चर शरीर के मुख्य दो भेद-चतुष्पद और परिसर्प / चतुष्पद स्थलचर शरीर के दो भेद-सम्मूच्छिम और गर्भज, फिर इन दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त, ये दो-दो प्रकार। परिसर्प स्थलचर शरीर के मुख्य दो भेदउर:परिसर्प और भजपरिसर्प / उर:परिसर्प और भजपरिसर्प, इन दोनों के शरीर के सम्मच्छिम और गर्भज तथा उनके पर्याप्तक और अपर्याप्तक प्रभेद होते हैं / खेचर शरीर के भी सम्मूच्छिम. गर्भज तथा उनके पर्याप्त, अपर्याप्त भेद / मनुष्य शरीर के मुख्य दो भेद-सम्मूच्छिम और गर्भज / फिर गर्भज मनुष्य शरीर के दो भेद-पर्याप्तक और अपर्याप्तक / इस प्रकार प्रौदारिक शरीर के कुल 50 भेदप्रभेदों की गणना कर लेनी चाहिए।' औदारिक शरीर में संस्थानद्वार 1488. ओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णते ? गोयमा! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते / (1488 प्र. भगवन् ! औदारिक शरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है? [उ.] गौतम ! (वह) नाना संस्थान बाला कहा गया है / 1489. एगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! किसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! जाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते / [1486 प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय-औदारिक शरीर कैसे संस्थान (आकार ) का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) नाना संस्थान वाला कहा गया है / 1490. [1] पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! किसंठाणसंठिए पणते ? गोयमा ! मसूरचंदसंठाणसंठिए पण्णत्ते। [1460-1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक शरीर किस प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) मसूर-चन्द्र (मसूर की दाल) जैसे संस्थान वाला कहा गया है। [2] एवं सुहुमपुढविक्काइयाण वि / | 1460-2] इसी प्रकार सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों का (ौदारिक शरीर संस्थान) भी (मसूर को दाल के समान है।) [3] बायराण वि एवं चेव / 1. प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्र 410 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org