Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ 406] [प्रज्ञापनासूत्र विवेचन--माण्डलिकपद-प्राप्ति का निषेध-केवल सप्तम नरक तथा तेजस्काय एवं वायुकाय में से निकल कर जन्म लेने वाले मनुष्य माण्डलिकपद प्राप्त नहीं कर सकते हैं।' दशम : रत्नद्वार 1467. सेणावइरयणत्तं गाहावइरयणत्तं वड्डइरयणतं पुरोहियरयणतं इत्थिरयणतं च एवं चेव, णवरं अणुत्तरोववाइयवज्जेहितो। [1467, सेनापति रत्नपद, गाथापतिरत्नपद, वर्धकिरत्नपद, पुरोहित रत्नपद और स्त्रीरत्नपद की प्राप्ति के सम्बन्ध में इसी प्रकार (अर्थात-माण्डलिकत्वप्राप्ति के कथन के समान समझना चाहिए।) विशेषता यह है कि अनुत्तरौपपातिक देवों को छोड़ कर (सेनापतिरत्न प्रादि हो सकते हैं।) 1468. प्रासरयणत्तं हस्थिरयणत्तं च रयणप्पभाओ णिरंतरं जाव सहस्सारो अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा। 1468] अश्वरत्न एवं हस्तिरत्नपद, रत्नप्रभापृथ्वी से लेकर निरन्तर (लगातार) यावत् सहस्रार (देवलोक के देव तक से) कोई (जीव) प्राप्त कर सकता है, कोई प्राप्त नहीं कर सकता। 1469. चक्करयणत्तं छत्तरयणतं चम्मरयणत्तं दंडरयणतं असिरयणतं मणिरयणत्तं कागिणिरयणतं एतेसि णं असुरकुमारेहितो प्रारद्ध निरंतरं जाव ईसाणेहितो उववातो, सेसेहितो णो इण? सम? / दारं 10 // (1469] चक्ररत्न, छत्ररत्न, चर्मरत्न, दण्ड रत्न, असिरत्न, मणिरत्न एवं काकिणी रत्न पर्याय में उत्पत्ति, असुरकुमारों से लेकर निरन्तर (लगातार) यावत् ईशानकल्प के देवों से हो सकती है, शेष भवों से (आए हुए जीवों में) यह योग्यता नहीं है / -दशम द्वार / / 10 / / विवेचन--चक्रवर्ती के विविधरत्नपद की प्राप्ति की विचारणा प्रस्तुत रत्नद्वार में चक्रवर्ती के 14 रत्नों में से कौन-सा रत्न किन-किन को प्राप्त हो सकता है ? इस सम्बन्ध में विचारणा की रत्नद्वार का सार यह है कि चक्रवर्ती के 14 रत्नों में से सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकिरत्न, पुरोहित रत्न और स्त्रीरत्न पद के लिए माण्डलिकत्व के समान सप्तम नरक, तेजस्काय, वायुकाय और अनुत्तर विमान में से बिना व्यवधान के आने वाले अयोग्य हैं / अश्वरत्न और हस्तिरत्न पद के लिए प्रथम नरक से लेकर लगातार सहस्रारकल्प तक के देव योग्य हैं तथा चक्ररत्न, चर्मरत्न, छत्ररत्न, दण्डरत्न, असिरत्न, मणिरत्न और काकिणीरत्न के लिए असुरकुमार से लेकर ईशानकल्प से आने वाले योग्य हैं। 1. पष्णवणासुन (प्रस्तावनादि) भा. 2, पृ. 115 2. पण्णवणामुस (प्रस्तावनादि) भा. 4, पृ. 569 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org