________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] [419 [3] एवं गब्भवक्कंतिए वि / [1484-3] इसी प्रकार गर्भज (जलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर) के भी (पर्याप्तक और अपर्याप्तक, ये दो भेद समझ लेने चाहिए)। 1485. [1] थलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते / तं जहा–चउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य परिसप्पथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य / [1485-1 प्र.) भगवन् ! स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार का कहा गया है / यथा--- चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रिय औदारिक शरीर और परिसर्प-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर / [2] चउपयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पणते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते। तं जहा सम्मच्छिमचउम्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे य गम्भवक्कंतियचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियोरालियसरीरे य / [1485-2 प्र.] भगवन् ! चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार सम्मूच्छिम चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर और गर्भज चतुष्पद-स्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर / [3] सम्मुच्छिमचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते / तं जहा–पज्जत्तसम्मच्छिमचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियमोरालियसरीरे य अपज्जत्तसम्मच्छिमचउप्पयथलयरतिरिक्खजोणियपंचेंदियोरालियसरीरे य / [1485-3 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम चतुष्पद-स्थल चरति-र्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार का कहा गया है / जैसे कि-पर्याप्तक सम्मूच्छिम चतुप्पदस्थलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर और अपर्याप्तक सम्मूच्छिम चतुष्पद स्थलचरतिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर / [4] एवं गम्भवक्कतिए वि। [1485-4] इसी प्रकार गर्भज (---चतुष्पद स्थलचर तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर) के भी (पर्याप्तक और अपर्याप्तक, ये दो प्रकार समझ लेने चाहिए / ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org