________________ इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान-पद] / 417 1478. [1] पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! दुविहे पण्णते। तं जहा-सुहमपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे य बादरपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे य / [1478-1 प्र. भगवन् ! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-प्रौदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार का कहा गया है। यथा-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-प्रौदारिक शरीर और बादरपृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-प्रौदारिक शरीर / [2] सुहमपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! दुविहे पण्णते। तं जहा-पज्जत्तगसुहमपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे य अपज्जत्तगसुहमपुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरे य / [1478-2 प्र.] भगवन् ! सूक्ष्मपृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-प्रौदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा है ? [उ.] गौतम ! (वह भी) दो प्रकार का कहा गया है / वह इस प्रकार-पर्याप्तसूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-प्रौदारिक शरीर और अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-ग्रौदारिक शरीर / [3] बादरपुढविक्काइया वि एवं चेव / {1478-3] इसी प्रकार बादरपृथ्वीकायिक (एकेन्द्रिय प्रौदारिक शरीर के भी पर्याप्तक और अपर्याप्तक, ये दो भेद समझ लेने चाहिए !) 1479. एवं जाव वणस्सइकाइयएगिदियओरालिय त्ति / [1476] इसी प्रकार (अकायिक से लेकर) यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीर (तक के भी सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक और अपर्याप्नक के भेद से दो-दो प्रकार समझ लेने चाहिए।) 1480. बेइंदियओरालियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-पज्जत्तबेइंदियओरालियसरीरे य अपज्जत्तबेइंदियोरालियसरीरे य। [1480 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय-ग्रौदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार का कहा गया है / वह इस प्रकार-पर्याप्तद्वीन्द्रिय-औदारिक शरीर और अपर्याप्तद्वीन्द्रिय-प्रौदारिक शरीर / 1481. एवं तेइंदिय-चरिदिया वि / [1481] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय (प्रौदारिक शरीर के भी पर्याप्तक और अपर्याप्तक, ये दो-दो प्रकार जान लेने चाहिए।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org