________________ 454] [प्रज्ञापनासूत्र [610 उ.] गौतम ! (वे) सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं / 611. मणुस्सा णं भंते ! किं संतरं उववज्जंति ? निरंतरं उववज्जति ? गोयमा ! संतरं पि उववज्जति, निरंतरं पि उववज्जति / [611 प्र.] भगवन् ! मनुष्य सान्तर उत्पन्न होते हैं अथवा निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? [611 उ.] गौतम ! (वे) सान्तर की उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं / 612. देवा णं भंते ! कि संतरं उववज्जति ? निरंतरं उववज्जति ? गोयमा ! संतरं पि उववज्जति, निरंतरं पि उववज्जति / [612 प्र.] भगवन् ! देव सान्तर उत्पन्न होते हैं अथवा निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? [612 उ.] गौतम ! (वे) सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं। 613. रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! कि संतरं उववज्जति ? निरंतरं उववज्जति ? गोयमा ! संतरं पिउववज्जंति, निरंतरं पिउववज्जति / [613 प्र.] भगवन् ! क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नारक सान्तर उत्पन्न होते हैं अथवा निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? [613 उ.] गौतम ! (वे) सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं / 614. एवं जाव अहेसत्तमाए संतरं पि उववज्जति, निरंतरं पि उववज्जति / [614] इसी प्रकार सातवीं नरकपृथ्वी तक (के नैरयिक) सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं। 615. प्रसुरकुमारा णं भंते ! देवा कि संतरं उववज्जति ? निरंतरं उववज्जंति ? [615 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देव क्या सान्तर उत्पन्न होते हैं अथवा निरन्तर उत्पन्न होते हैं। [615 उ.] गौतम ! वे सान्तर भी होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं / 616. एवं जाव थणियकुमारा संतरं पि उववज्जति, निरंतरं पि उववज्जति / [616] इसी प्रकार स्तनितकुमार देवों तक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं। 617. पुढविकाइया णं भंते ! कि संतरं उववज्जति ? निरंतरं उबवज्जति ? गोयमा! नो संतरं उववज्जति, निरंतरं उववज्जंति / [617 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव क्या सान्तर उत्पन्न होते हैं अथवा निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? [617 उ.] गौतम ! (वे) सान्तर उत्पन्न नहीं होते, किन्तु निरन्तर उत्पन्न होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org