________________ [ 15 दसवाँ चरमपद ] [784 उ.] गौतम ! चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध 1. कथंचित् चरम 0 0i0 0 है, 2. अचरम नहीं है, 3. कथंचित् अवक्तव्य :: है। 4. (वह) न तो अनेक चरमरूप है, 5. न अनेक अचरमरूप है, 6. न ही अनेक प्रवक्तव्यरूप है, 7. न (वह) चरम और अचरम है, 8. न एक चरम और अनेक अचरमरूप है, (किन्तु) 9. कथञ्चित् अनेक चरमरूप और एक अचरम !000 0 है, 10. कथंचित् अनेक चरमरूप और अनेक अचरमरूप 600 है, 11. कथंचित् एक चरम और एक प्रवक्तव्य |000_ है (और) 12. कथंचित् एक चरम और अनेक अवक्तव्यरूप 00: है, 13. (वह) न तो अनेक चरमरूप और एक प्रवक्तव्य है, 14. न अनेक चरमरूप और अनेक अवक्तव्यरूप है, 15. न एक अचरम और एक प्रवक्तव्य है, 16. न एक अचरम और अनेक प्रवक्तव्यरूप है, 17. न अनेक अचरमरूप और एक प्रवक्तव्य है, 18. न अनेक अचरमरूप और न अनेक अवक्तव्यरूप है (और) 19. न (ही वह) एक चरम, एक अचरम और एक प्रवक्तव्य है, 20. न एक चरम, एक अचरम और अनेक प्रवक्तव्यरूप है, 21. न एक चरम, अनेक अचरमरूप और एक अवक्तव्य है, 22. न एक चरम, अनेक अचरमरूप और अनेक प्रवक्तव्यरूप है, (किन्तु) 23. कथंचित् अनेक चरमरूप, एक अचरम और एक प्रवक्तव्य है / शेष (तीन) भंगों का निषेध करना चाहिए। 785. पंचपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा। गोयमा ! पंचपएसिए णं खंधे सिय चरिमे 818|1 नो अचरिमे 2 सिय प्रवत्तव्वए।: 0 | 3 णो चरिमाइं 4 नो अचरिमाइं 5 नो प्रवत्तध्वयाई 6, सिय चरिमे य अचरिमे चरिमे य प्रचरिमाइं च 8 सिय चरिमाइं च प्रचरिमे य | 100 सिय चरिमाइं च अचरिमाइं च ||*|| | 10, सिय चरिमे य अवत्तव्वए य 0000/- 11, सिय चरिमे य प्रवत्तव्वयाइं च 12 सिय चरिमाइं च प्रवत्तम्वए या 13 नो चरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च 14, णो अचरिमे य प्रवत्तव्वए य 15 नो प्रचरिमे य प्रवत्तव्वयाई च 16 नो अचरिमाइं च प्रवत्तब्वए य 17 नो अचरिमाइं च अवत्तवयाइं च 18, नो चरिमे य अचरिमे य अवत्तवए य 19 नो चरिमे य अचरिमे य अवत्तन्वयाई च 20 नो चरिमे य अचरिमाई च प्रवत्तव्वए य 21 नो चरिमे य अचरिमाइंच प्रवत्तत्रयाईच 22 सिय चरिमाइंच प्रचरिमेय प्रवत्तन्वए य सिय चरिमाइंच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org