________________ पन्द्रहवां इन्द्रियपद : प्रथम उद्देशक [155 [3] पुढविकाइयाणं भंते ! फासिदिए केवतियं बाहल्लेणं पण्णते ? गोयमा ! अंगुलस्स प्रसंखेज्जइभागं बाहल्लेणं पण्णत्ते / [985-3 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय का बाहल्य (स्थूलता) कितना कहा गया है ? [685-3 उ.] गौतम ! (उसका) बाहल्य अंगुल से असंख्यातवें भाग (-प्रमाण) कहा है / [4] पुढविकाइयाणं भंते ! फासिदिए केवतियं पोहत्तणं पण्णते ? गोयमा ! सरोरपमाणमेत्ते पोहत्तेणं पण्णत्ते। {985-4 प्र.] भगवन् ! पृथ्वोकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय का पृथुत्व (विस्तार) कितना कहा गया है ? [985-4] गौतम ! (उनकी स्पर्शनेन्द्रिय का) विस्तार उनके शरीरप्रमाणमात्र है। [5] पुढविकाइयाणं भंते ! फासिदिए कतिपएसिए पण्णते? गोयमा ! अणंतपएसिए पण्णत्ते। [985-5 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों को स्पर्शनेन्द्रिय कितने प्रदेशों की कही हैं ? [985-5 उ.] गौतम ! अनन्तप्रदेशी कही गई है / [6] पुढविकाइयाणं भंते ! फासिदिए कतिपएसोगाढे पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जपएसोगाढे पण्णत्ते / [985.6 प्र.) भगवन् ! पृथ्वीकायिकों को स्पर्शनेन्द्रिय कितने प्रदेशों में अवगाढ़ कही है ? [985-6 उ.] गौतम ! असंख्यातप्रदेशों में अवगाढ़ कही है। [7] एतेसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं फासिदियस्स प्रोगाहण-पएसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सम्वत्थोवे पुढविकाइयाणं फासिदिए प्रोगाहणट्टयाए. से चेव पएसटुयाए प्रणतगुणे। [985-7 प्र.] भगवन् ! इन पृथ्वीकायिकों को स्पर्शनेन्द्रिय, अवगाहना की अपेक्षा और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? [985-7 उ.] गौतम ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा सबसे कम है, प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणी (अधिक) है / [8] पुढविकाइयाणं भंते ! फासिदियस्स केवतिया कक्खडगरुयगुणा पण्णता? गोयमा ! अणंता / एवं मउयलहुयगुणा वि / [985.8 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों को स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरु गुण कितने कहे गए हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org