________________ 336] [प्रज्ञापनासूब 1263. सकाइयपज्जत्तए पं. पुन्छा ? गोयमा ! जहाणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं / [1293 प्र.] भगवन् ! सकायिक पर्याप्तक के विषय में (भी पूर्ववत्) पृच्छा है, (उसका क्या समाधान है ?) [1263 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट कुछ अधिक सौ सागरोपमपृथक्त्व तक (वह सकायिक पर्याप्तकरूप में) रहता है। 1264. पुढविक्काइयपज्जत्तए णं 0 पुच्छा ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साइं। [1294 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक पर्याप्तक जीव के विषय में (भी पूर्ववत्) पृच्छा है ? [1294 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक (पृथ्वीकायिक पर्याप्तकरूप में बना रहता है / ) 1265. एवं प्राऊ वि। [1295] इसी प्रकार अप्कायिक पर्याप्तक के विषय में भी समझना चाहिए। 1296. तेउक्काइयपज्जत्तए णं 0 पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं राइंदियाई। [1296 प्र.] भगवन् ! तेजस्कायिक पर्याप्तक कितने काल तक (लगातार) तेजस्कायिक पर्याप्तक बना रहता है ? [1266 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात रात्रि-दिन तक (वह) तेजस्कायिक-पर्याप्तकरूप में बना रहता है। 1267. बाउक्काइयपज्जत्तए णं० पुच्छा ? गोयमा! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साई। [1267 प्र.] भगवन् ! वायुकायिक पर्याप्तक के विषय में भी (इसी प्रकार को) पृच्छा है ? [1267 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक (वह वायुकायिक पर्याप्तपर्याय में रहता है।) 1268. वणप्फइकाइयपज्जत्तए पं० पुच्छा ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साई। [1268 प्र.] भगवन् ! वनस्पतिकायिक पर्याप्तक के विषय में भी (पूर्ववत्) प्रश्न है ? [1298 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहर्त तक और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक (वनस्पतिकायिक पर्याप्तक पर्याय में बना रहता है।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org