Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ वीसवाँ अन्तक्रियापद] [381 इसी प्रकार नारकजीव, असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों में, पृथ्वी कायिक ग्रादि एकेन्द्रियों में, विकलेन्द्रियों में, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों में रहता हुअा अन्तक्रिया नहीं कर सकता / इसका भी कारण वही भवस्वभाव है।' ___ मनुष्यों में नारकादि के जीवों को अन्तक्रिया--मनुष्य पर्याय में पाया हया कोई नारक, जिस मनुष्यत्व प्रादि को परिपूर्ण सामग्री प्राप्त हो गई हो, वह पूर्वोक्त प्रकार से क्रमशः समस्त कर्म क्षय करके अन्तक्रिया करता है और कोई नारक, जिसे परिपूर्ण सामग्री प्राप्त नहीं होती, वह अन्तक्रिया नहीं कर पाता। इसी प्रकार मनुष्यों में आया हुआ कोई-कोई असुरकुमार आदि (असुरकुमार से लेकर वैमानिक देव तक) का जीव, जिसे परिपूर्ण सामग्री प्राप्त हो जाती है वह अन्तक्रिया कर लेता है और जिसे परिपूर्ण सामग्री नहीं मिलती, वह अन्तक्रिया नहीं कर पाता / प्रत्येक दण्डकवर्ती जीव को चौवीस दण्डकवर्ती जोवों में अन्तक्रिया-नारक आदि प्रत्येक दण्डक का जीव, नारक आदि चौवीस दण्डकों में से प्रत्येक दण्डक में रहते हुए अन्तक्रिया कर सकता है या नहीं ? इस प्रकार के कुल 244 24 - 576 प्रश्नोत्तर विकल्प हो जाते हैं।' द्वितोय : अनन्तरद्वार 1410. [1] गेरइया णं भंते ! कि अणंतरागता अंतकिरियं करेंति परंपरागया अंतकिरियं करेंति ? गोयमा ! अणंतरागया वि अंतकिरियं करेंति, परंपरागता वि अंतकिरियं करेंति / [1410-1 प्र.] भगवन् ! नारक (जीव) क्या अनन्तरागत अन्तक्रिया करते हैं, अथवा परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं ? उ.] गौतम ! (वे) अनन्तरागत भी अन्तक्रिया करते हैं और परम्परागत भो अन्तक्रिया करते हैं। [2] एवं रयणप्पभापुढविणेरइया वि जाव पंकप्पभापुढविणेरइया। / 1410-2 प्र.] इसी प्रकार रत्नप्रभा नरकभूमि के नारकों से लेकर पंकप्रभा नरकभूमि के नारकों तक की अन्तक्रिया के विषय में समझ लेना चाहिए। [3] धूमप्पभापुढविणेरइया णं भंते ! पुच्छा। गोयमा ! णो अणंतरागया अंतकिरियं करेंति, परंपरागया अंतकिरियं करेंति / एवं जाव अहेसत्तमापुढविणेरइया। [1410-3 प्र.] (अब) प्रश्न है—धूमप्रभापृथ्वी के नारक अनन्तरागत अन्तक्रिया करते हैं या परम्परागत अन्तक्रिया ? 1. प्रज्ञापना : मलय. वृत्ति, पत्र 397 2. वही, पत्र 397 3. कही, पत्र 397 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org