________________ 386] [प्रज्ञापनासत्र [1416 प्र.] इसी तरह (नरयिक नैयिकों में से निकल कर) निरन्तर (व्यवधानरहितसीधा) (नागकुमारों से ले कर) यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक में (उत्पन्न हो सकता है ?) ऐसी पृच्छा करनी चाहिए। [उ.] गौतम! यह अर्थं समर्थ नहीं। 1420. [1] गैरइए णं भंते ! णेरइएहितो अणंतरं उध्वट्टित्ता पंचेंदियतिरिक्खजोगिएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, प्रत्येगइए णो उववज्जेज्जा / [1420-1 प्र.| भगवन् ! नारक जीव नारकों में से उद्वर्तन कर अन्तर (व्यवधान) रहित (सीधा) पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न हो सकता है ? [उ. | गौतम ! (इनमें से) कोई उत्पन्न हो सकता है (और) कोई उत्पन्न नहीं हो सकता / [2] जे णं भंते ! रइएहितो अगंतरं उन्वट्टित्ता पंचेंदियतिरिक्खजोगिएसु उववज्जेज्जा से णं केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्जा सवणयाए ? गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा / 61420-2 प्र. भगवन् ! जो नारक नारकों में से निकल कर सीधा तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है, क्या वह केवलिप्ररूपित धर्मश्रवण प्राप्त कर सकता है ? [उ.] गौतम ! (उनमें से) कोई धर्मश्रवण को प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता / [3] जे णं भंते ! केवलिपण्णतं धम्मं लभेज्जा सवणयाए से णं केवलं बोहि बुझेज्जा। गोयमा ! अत्थेगइए बुज्झज्जा, अत्थेगइए णो बुज्झज्जा। [1420-3 प्र.] भगवन् ! जो (पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में उत्पन्न जीव) केवलि-प्ररूपित धर्मश्रवण प्राप्त कर सकता है, क्या वह केवल (शुद्ध) बोधि को समझ सकता है ? उ,] गौतम ! (इनमें से) कोई (केवलबोधि) को समझ सकता है (और) कोई नहीं समझ पाता। [4] जे णं भंते ! केवलं बोहिं बुज्झज्जा से णं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा? गोयमा ! सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा। [1420-4 प्र.| भगवन् ! जो (नै रयिकों से तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय में अनन्तरागत जीव) केवलबोधि को समझ सकता है, क्या वह (उस पर) श्रद्धा करता है, प्रतीति करता है (तथा) रुचि करता है ? [उ.] (हाँ) गौतम ! (वह) श्रद्धा करता है, प्रतीति करता है (तथा) रुचि करता है / [5] जे णं भंते ! सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा से णं आभिणिबोहियणाण-सुयणाणाई उपपाडेज्जा ? हता! गोयमा ! उप्पाडेज्जा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org