________________ 400] [प्रज्ञापनासून गोयमा ! णो इण? सम?, अंतकिरियं पुण करेज्जा। [1446 प्र.] भगवन् ! पंकप्रभापृथ्वी का नारक पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में से निकल कर क्या सीधा तीर्थकरत्व प्राप्त कर लेता है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु वह अन्तक्रिया कर सकता है / 1447. धूमप्पमापुढविणेरइए णं 0 पुच्छा। गोयमा ! णो इण? समट्ठ, विरतिं पुण लभेज्जा / [1447 प्र.] धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिक के सम्बन्ध में प्रश्न है (कि क्या वह धूमप्रभापृथ्वी के नारकों में से निकल कर सीधा तीर्थकरत्व प्राप्त कर सकता है ?) [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। किन्तु वह विरति प्राप्त कर सकता है / 1448. तमापुढविणेरइए णं 0 पुच्छा। गोयमा ! णो इण? सम?, विरयाविरइं पुण लभेज्जा / [1448 प्र.] (इसी प्रकार का) प्रश्न तमःपृथ्वी के नारक के सम्बन्ध में है / [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु वह (तमःपृथ्वी का नारक) विरताविरति को प्राप्त कर सकता है। 1449. अहेसत्तमाए 0 पुच्छा। गोयमा ! णो इण8 सम8, सम्मत्तं पुण लभेज्जा / [1446 प्र.] (अब) अधःसप्तमपृथ्वी के (नैरयिक के विषय में) पृच्छा है (कि क्या वह तीर्थकरत्व प्राप्त कर सकता है ?) [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु वह सम्यक्त्व प्राप्त कर सकता है। 1450. असुरकुमारे 0 पुच्छा। गोयमा ! णो इणट्ठ सम8, अंतकिरियं पुण करेज्जा। [1450 प्र.] इसी प्रकार की पृच्छा असुरकुमार के विषय में है (कि क्या वह असुरकुमारों में से निकल कर सीधा तीर्थकरत्व प्राप्त कर सकता है ?) [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु वह अन्तक्रिया (मोक्षप्राप्ति) कर सकता है / 1451. एवं निरंतरं जाव प्राउक्काइए। [1451 | इसी प्रकार (असुर कुमार की भाँति) लगातार अप्कायिक तक (अपने-अपने भव से उद्वर्तन कर सीधे तीर्थकरत्व प्राप्त नहीं कर सकते, किन्तु अन्तक्रिया कर सकते हैं / ) 1452. तेउक्काइए णं भंते ! तेउक्काइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता उववज्जेज्जा (त्ता) तित्थगरत्तं लभेज्जा? गोयमा ! णो इण8 सम?, केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्जा सवणयाए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org