________________ 384] [प्रज्ञापनासूत्र [1415-2 प्र.] भगवन् ! अनन्तरागता कितनी असुरकुमारियाँ एक समय में अन्तक्रिया करती हैं ? / [उ.] गौतम ! (वे एक समय में) जघन्य एक, दो या तीन (और) उत्कृष्ट पांच (अन्तक्रिया करती हैं।) [3] एवं जहा असुरकुमारा सदेवीया तहा जाव थणियकुमारा। [1415-3] इसी प्रकार जैसे अनन्तरागत असुरकुमारों तथा उनकी देवियों की (संख्या एक समय में अन्तक्रिया करने की बताई है,) वैसे ही यावत् स्तनितकुमार (तथा उनकी देवियों) तक की (अन्तक्रिया के सम्बन्ध में समझ लेना चाहिए।) 1416. [1] अणंतरागया जं भंते ! पुढविक्काइया एगसमएणं केवतिया अंतकिरियं पकरेंति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि / [1416-1 प्र.] भगवन् ! अनन्तरागत पृथ्वीकायिक एक समय में कितने अन्तक्रिया करते [उ.] गौतम ! (वे एक समय में) जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार (अन्तक्रिया करते हैं।) [2] एवं प्राउक्काइया वि चत्तारि / क्णप्फइकाइया छ / पंचेंदियतिरिक्खजोणिया दस / तिरिक्खजोणिणीओ दस। मणूसा दस। मणसीओ वीसं। वाणमंतरा दस / वाणमंतरीओ पंच / जोइसिया दस / जोइसिणीयो वीसं / वेमाणिया अट्ठसतं / वेमाणिणीओ वीसं / दारं 3 // 1416-2] इसी प्रकार (अप्कायिक आदि जघन्य तो एक समय में एक दो या तीन और उत्कृष्टत:) अप्कायिक भी चार (अन्तक्रिया करते हैं;) वनस्पतिकायिक छह, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च दस, (पंचेन्द्रिय) तिर्यञ्च स्त्रियाँ दस, मनुष्य दस, मनुष्यनियाँ बीस, वाणव्यन्तर देव दस, वाणव्यन्तर देवियाँ पांच, ज्योतिष्क देव दस, ज्योतिष्क देवियाँ बीस, वैमानिक देव एक सौ आठ, वैमानिक देवियाँ वीस (अन्तक्रिया करती हैं।) --तृतीय द्वार // 3 // विवेचन–प्रस्तुत द्वार में केवल अनन्तरागत अन्तक्रिया कर सकने वाले जीवों के सम्बन्ध में प्रश्न है कि वे एक समय में कितनी संख्या में अन्तक्रिया कर सकते हैं ? अनन्तरागत अन्तक्रिया कर सकने वाले जीवों की संख्या-सूचक तालिका इस प्रकार हैअनन्तरागत जीव जघन्य संख्या उत्कृष्ट संख्या नारक (समुच्चय) 1, 2, 3 प्रथम, द्वितीय, तृतीय नारक चतुर्थ पृथ्वी के नारक 1, 2, 3 समस्त भवनपति देव 1, 2,3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org