________________ 382] [प्रज्ञापनासूत्र [उ.] हे गौतम ! (वे) अनन्तरागत अन्तक्रिया नहीं करते, (किन्तु) परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमपृथ्वी (तमस्तमाभूमि तक) के नैरयिकों (की अन्तक्रिया के विषय में जान लेना चाहिए)। 1411. असुरकुमारा जाव थणियकुमारा पुढवि-आउ-वणस्सइकाइया य अणंतरागया वि अंतकिरियं करेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं करेंति / [1411] असुरकुमार से (लेकर) यावत् स्तनितकुमार (तक के भवनपति देव) तथा पृथ्वी कायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक (एकेन्द्रिय जीव) अनन्तरागत अन्तक्रिया भी करते हैं और परम्परागत भी अन्तक्रिया करते हैं। 1412. तेउ-बाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदिया णो अणंतरागया अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति / [1412] तेजस्कायिक, वायुकायिक (एवं) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय (और) चतुरिन्द्रिय (विकलेन्द्रिय स जीव) अनन्तरागत अन्तक्रिया नहीं करते, किन्तु परम्परागत अन्तक्रिया करते है। 1413. सेसा अणंतरागया वि अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं पकरेंति / दारं 2 // 1413] शेप (सभी जीव) अनन्तरागत अन्तक्रिया भी करते हैं और परम्परागत अन्तक्रिया भी करते हैं। -द्वितीय द्वार / / 2 / / विवेचन–अन्तक्रिया : अनन्तरागत या परम्परागत ? - अन्तक्रिया (मुक्ति) केवल मनुष्यभव में ही हो सकती है, इसलिए द्वितीय द्वार में नारक से लेकर वैमानिक तक के सभी जीवों के विषय में प्रश्न है कि वे नारक आदि के जीव जो अन्तक्रिया करते हैं, वे नारकादिभव में से मर कर व्यवधानरहित सीधे मनुष्यभव में आकर (अनन्तरागत) अन्तक्रिया (मोक्षप्राप्ति) करते हैं, या नारकादिभव के बाद एक या अनेक भव करके फिर मनुष्यभव में आकर (परम्परागत) अन्तक्रिया करते हैं ? यह इन सभी प्रश्नों का आशय है।' जीवों की अनन्तरागत और परम्परागत अन्तक्रिया का निर्णय-समुच्चयरूप से नारक जीव दोनों प्रकार से अन्तक्रिया करते हैं। अर्थात् नरक से सीधे मनुष्यभव में पा कर भी अन्तक्रिया करते हैं और नरक से निकल कर तिर्यञ्च आदि के भव करके फिर मनुष्यभव में पा कर भी अन्तक्रिया करते हैं। किन्तु विशेषरूप से रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा और पंकप्रभा, इन चारा नरकभूमियों के नारक अनन्तरागत अन्तक्रिया करते हैं और परम्परागत भी। किन्तु शेष तीन (धूमप्रभा, तमःप्रभा और तमस्तम:प्रभा) नरकभूमियों के नारक केवल परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं / इसका कारण पूर्वोक्त ही समझना चाहिए / ग्रसरकमार से लेकर स्तनितकमार तक 10 प्रकार के भवनपति देव तथा पथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक, ये तीन प्रकार के एकेन्द्रिय जीव अनन्तरागत और परम्परागत दोनों ----- --- - 1. (क) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्र 393 (ख) प्रज्ञापना. प्रमेयवोधिनी. भा. 4, पृ. 492 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org