________________ [प्रज्ञापनासून [2] एवं जाव थणियकुमारे / [1426-2] इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिये / 1427. [1] पुढविकाइए णं भंते / पुढविक्काइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता गैरइएसु उववज्जेज्जा? गोयमा ! णो इ8 सम? / [1427-1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिकों में से उद्वर्तन कर (क्या) सीधा नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [2] एवं असुरकुमारेसु वि जाव थणियकुमारसु वि / _[1427-2] इस प्रकार (की वक्तव्यता) असुरकुमारों यावत् स्तनितकुमारों (की उत्पत्ति के विषय में समझ लेना चाहिए / ) 1428. [1] पुढविक्काइए णं भंते ! पुढविक्काइएहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता पुढविक्काइएसु उववज्जेज्जा? ___ गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए णो उववज्जेज्जा। [1428-1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिकों में से निकल कर (क्या) सीधा पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? _ [उ.] गौतम ! (उनमें से) कोई (पृथ्वीकायिकों में) उत्पन्न होता है (और) कोई उत्पन्न नहीं होता। [2] जेणं भंते ! उववज्जेज्जा से णं केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्जा सवणयाए ? गोयमा ! णो इण8 सम8। [1428-2 प्र.] भगवन् ! (उनमें से) जो (पृथ्वीकायिकों में) उत्पन्न होता है, (क्या) वह केवलिप्रज्ञप्त धर्मश्रवण प्राप्त कर सकता है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / [3] एवं आउक्काइयादिसु पिरंतरं भाणियव्वं जाव चरिदिएसु / [1428-3] इसी प्रकार की वक्तव्यता अप्कायिक आदि (प्रकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय) से लेकर यावत् चतुरिन्द्रिय जोवों तक में निरन्तर (उत्पत्ति के विषय में) कहना चाहिए। [4] पंचेंदियतिरिक्खजोणिय-मणूसेसु जहा णेरइए (सु 1420-21) / [1428.4] (पृथ्वीकायिक की पृथ्वीकायिकों में से निकल कर सोध) पंचेन्द्रियतिर्यञ्च Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org