________________ वीसवां अन्तक्रियापद] [397 (आदि) की पृच्छा का कथन उसी प्रकार किया गया है, जैसे (सू. 1437 में) नैरयिकों में उत्पन्न होने का (कथन किया गया) है / 1442. एवं मणूसे वि। [1442] इसी प्रकार (अर्थात्-पंचेन्द्रियतिर्यञ्च के समान हो) मनुष्य का (उत्पाद) भी (चौवीस दण्डकों में यथायोग्य कहना चाहिए / ) 1443. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिए जहा असुरकुमारे (सु. 1423-26) / दारं 4 / [1443] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक का उत्पाद इस प्रकार है-जैसा (चौवीस दण्डका में (सू. 1423-26 में) असुरकुमार (के उत्पाद) का (कथन) है। चतुर्थ द्वार / / विवेचन-असुरकुमार से लेकर वैमानिक तक चौवीस वण्डकों में उत्पत्ति आदि सम्बन्धी चर्चा-प्रस्तुत 21 सूत्रों (1423 से 1443 तक) में असुरकुमार से लेकर अवशिष्ट नौ प्रकार के भवनपति देव, पृथ्वीकायादि पंच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों की नारक से यावत् वैमानिक तक में अनन्तर उद्वृत्त होकर उत्पन्न होने की चर्चा की गई। उद्धृत्तद्वार का सार इस प्रकार है / जीव मर कर सीधा कहाँ उत्पन्न हो मर कर नये जन्म में सकता है ? धर्मश्रवणादि की संभावना नारक पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च या मनुष्य में देशविरति के शीलादि और अवधिज्ञान एवं मोक्ष (मनुष्यभव में) दस भवनपति पृथ्वी, अप्, वनस्पति में तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय या मनुष्य में नारकों के समान पृथ्वी, अप्, वनस्पति पृथ्वी, अप, तेज और वायु में तथा विकलेन्द्रियों में मनुष्यों में तथा पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में नारकों के समान तेज, वायु पृथ्वीकायिकों से लेकर, चतुरिन्द्रियों तक में पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में धर्मश्रवण द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रिय पृथ्वी कायिकों से लेकर पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में पृथ्वीकायिक के समान कई मनुष्यों में मनःपर्यवज्ञान पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च भवनपतियों में अवधिज्ञान एकेन्द्रिय से लेकर यावत् चतुरिन्द्रियों में पृथ्वीकायिक के समान 1. पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ टिप्पणयुक्त) भा. 1, पृ. 322 से 324 तक 2. पण्णवणामुत्तं (परिशिष्ट-प्रस्तावना सहित) भा. 2, पृ. 114 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org