________________ 340 ] [ प्रज्ञापनासून [1315 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक (वह बादरा पृथ्वीकायिक पर्याप्तकरूप में रहता है / ) 1316. एवं प्राउक्काइए वि। [1316] इसी प्रकार (बादर) अप्कायिक (के विषय में) भी (समझना चाहिए / ) 1317. तेउक्काइयपज्जत्तए णं भंते ! तेउक्काइयपज्जत्तए पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई राइंदियाई। [1317 प्र. भगवन् ! तेजस्कायिक पर्याप्तक, (बादर) तेजस्कायिक पर्याप्तक के रूप में कितने काल तक रहता है ? [1317 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात रात्रि-दिन तक (वह तेजस्कायिक पर्याप्तक के रूप में रहता है।) 1318. वाउक्काइए वणफइकाइए पत्तेयसरीरबायरवणष्फइकाइए य पुच्छा ? गोयमा! जहणणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साई। [1318 प्र.] भगवन् ! वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक (पर्याप्तक) कितने काल तक अपने-अपने पर्याय में रहते हैं ? [1318 उ.] गौतम ! ये जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक अपनेअपने पर्याय में रहते हैं।) 1316. णिगोयपज्जत्तए बादरणिगोयपज्जत्तए य पुच्छा? गोयमा ! दोणि वि जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / {1316 प्र.] भगवन् ! निगोद पर्याप्तक और बादर निगोद पर्याप्तक कितने काल तक निगोदपर्याप्तक और बादर निगोदपर्याप्तक के रूप में रहते हैं ? [1316 उ.] गौतम ! ये दोनों जघन्य भो और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त तक (स्व-स्वपर्याय में बने रहते हैं।) 1320. बादरतसकाइयपज्जत्तए णं भंते ! बादरतसकाइयपज्जत्तए ति कालो केचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं सागरोक्मसतहपुत्तं सातिरेगं / दारं 4 // [1320 प्र.] भगवन् ! बादर सकायिक पर्याप्तक बादर सकायिक पर्याप्तक के रूप में कितने काल तक रहता है ? [1320 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट कुछ अधिक शतसागरोपमपृथक्त्व पर्यन्त बादर त्रसकायिक पर्याप्तक के रूप में बना रहता है। चतुर्थ द्वार / / 4 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org