________________ 350 [प्रज्ञापनासूत्र 1337. णीललेसे गं भंते ! णीललेसे ति० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाई पलिग्रोवमासंखेज्जइभागन्भइयाई। {1337 प्र.] भगवन् ! नीललेश्या वाला जीव कितने काल तक नीललेश्या वाला रहता है ? [1337 उ.] गौतम ! (वह) जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम तक (लगातार नीललेश्या वाला रहता है)। 1338. काउलेस्से 0 पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिणि सागरोवमाई पलिग्रोवमासंखेज्जइभागभइयाई। [1338 प्र.] भगवन् ! कापोतलेश्यावान् जीव कितने काल तक कापोतलेश्या वाला रहता है ? [1338 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम तक (कापोतलेश्या वाला लगातार रहता है)। 1336. तेउलेस्सेणं० पुच्छा ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं पलिग्रोवमासंखेज्जहभागभइयाई। [1339 प्र.] भगवन् ! तेजोलेश्यावान् जीव कितने काल तक तेजोलेश्या वाला रहता है ? __[1336 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम तक (तेजोलेश्यायुक्त रहता है)। 1340. पम्हलेस्से पं० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं अंतोमुत्त भइयाई। [1340 प्र.] भगवन् ! पद्मलेश्यावान् जीव कितने काल तक पद्मलेश्या वाला रहता है ? [1340 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक दस सागरोपम तक (पद्मलेश्या से युक्त रहता है)। 1341. सुश्कलेस्से गं भंते ! 0 पुच्छा ? गोयमा ! जहष्णेणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तम्भइयाई / [1341 प्र.] भगवन् ! शुक्ललेश्यावान् जीव कितने काल तक शुक्ललेश्या वाला रहता है ? . 1341 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम तक (शुक्ललेश्या वाला रहता है)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org