________________ 362] [ प्रज्ञापनासूत्र 1370. सिद्धकेलिप्रणाहारए गं० पुच्छा ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए / [1370 प्र.] भगवन् ! सिद्धकेवली-अनाहारक कितने काल तक सिद्धकेवली-अनाहारक के रूप में रहता है ? [1370 उ.] गौतम ! (वह) सादि-अपर्यवसित है। 1371. भवत्थकेवलिश्रणाहारए णं भंते ! 0 पुच्छा? गोयमा! भवत्थकेवलिप्रणाहारए दुविहे पण्णत्ते / तं जहा--सजोगिभवत्थकेवलिनणाहारए य 1 प्रजोगिभवत्थ केवलिप्रणाहारए य 2 / [1371 प्र.] भगवन् ! भवस्थकेवली-अनाहारक कितने काल तक (निरन्तर) भवस्थ. केवली-अनाहारकरूप में रहता है ? [1371 उ.] गौतम ! भवस्थकेवली-अनाहारक दो प्रकार के हैं-१. सयोगि-भवस्थकेवलीअनाहारक और 2. अयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारक / 1372. सजोगिभवत्थकेवलिप्रणाहारए णं भंते ! 0 पुच्छा ? गोयमा ! अजहण्णमणक्कोसेणं तिणि समया। [1372 प्र.] भगवन् ! सयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारक कितने काल तक सयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारक के रूप में रहता है ? [1372 उ.] गौतम ! अजघन्य-अनुत्कृष्ट तीन समय तक (सयोगिभवस्थकेवली-अनाहारकरूप में रहता है।) 1373. अजोगिमवत्थकेवलिप्रणाहारए पं० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / दारं 14 // [1373 प्र.] भगवन् ! अयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारक कितने काल तक अयोगि-भवस्थकेवली-अनाहारकरूप में रहता है ? [1373 उ.] गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तमुहर्त तक (अयो-गिभवस्थकेवली अनाहारकरूप में रहता है।) -चौदहवाँ द्वार / / 14 // विवेचन-चौदहवां प्राहारकद्वार-प्रस्तुत दस सूत्रों (सू. 1364 से 1373 तक) में विविध आहारक और अनाहारक के अवस्थानकालमान की प्ररूपणा की गई है। छमस्थ प्राहारक का कालमान-जघन्य दो समय कम क्षुद्रभव ग्रहणकाल तक और उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक वह निरन्तर छद्मस्थ-आहारक-रूप में रहता है। क्षुद्रभव या क्षुल्लक भवग्रहण दो सौ छप्पन पावलिका रूप जानना चाहिए। जघन्य कालमान का स्पष्टीकरण- यद्यपि विग्रहगति चार और पांच समय की भी होती है, तथापि बहुलता से वह दो या तीन समय की होती है, बार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org